Wednesday, March 23, 2011

क्रिकेट मैच की बल्ले बल्ले और फिक्सिंग मिक्सिंग-हिन्दी हास्य व्यंग्य (cricket matche mein balle balle aur fixing mixing-hindi comic article)

बल्ले बल्ले और फिक्सिंग मिक्सिंग-हिन्दी हास्य व्यंग्य
लेखक -दीपक भारतदीप
आखिर क्रिकेट में चल क्या रहा है? बल्ले बल्ले कि फिक्सिंग मिक्सिंग! सुबह दो चैनल अपने कार्यक्रम इस तरह प्रस्तुत कर रहे थे जैसे कि क्रिकेट इस देश का जीवन हो। उनकी प्रस्तुति इस तरह की थी जैसे पहले नौटंकी वालों के ढिंढोरची ढोलक बजाकर कहते थे कि ‘देखो, देखो आपके शहर में आ गयी नौटंकी। कल से शुरु!’
दूसरी तरफ दो चैनल बता रहे थे कि विश्व कप प्रतियोगिता में सात मैच फिक्स होने का संदेह है। दो सटोरिये घूमकर खिलाड़ियों को फिक्स कर रहे हैं। उनके लिये ‘क्रिकेट के गद्दार’ शब्द का उपयोग किया गया। पाकिस्तान, वेस्टइंडीज और आस्ट्र्रेलिया के खिलाड़ियों की तरफ उंगली उठाई। बीसीसीआई की टीम जिसे टीम इंडिया बताकर क्रिकेट में देशप्रेम की भावना को उबारा जा रहा है उसके खिलाड़ियों की तरफ कोई संकेत नहीं! मतलब सभी पाक साफ हैं। हां होंगे! जिन दो खिलाड़ियों पर क्रिकेट मैच फिक्सिंग का आरोप लगाकर उन पर आजीवन क्रिकेट खेलने की सजा दी गयी वह अब विशेषज्ञ की भूमिका में हैं। उनके इतिहास की चर्चा से टीवी चैनल कतराते हैं क्योंकि वह आजकल उनके स्टूडियो में जो शोभायमान हैं। वैसे देखा गया है जिस पर क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगता है उसे प्रचार माध्यम भी अपने कार्यक्रमों से बहिष्कृत कर देते हैं, पर अब सब चलने लगा है। पाकिस्तान का एक फिक्सर भी आजकल भारत में विशेषज्ञ बनकर घूम रहा है।
एक टीवी चैनल में उद्घोषक ने मजेदार बात कही कि ‘जिन पत्रकारों पर फिक्सिंग में संलिप्त होने का संदेह है वह खिलाड़ियों से बाकायदा मिल रहे हैं।’
अब हम उनसे कैसे पूछें कि ‘जिन खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग के आरोप प्रमाणित हो चुके हैं वह उनके स्टूडियो में क्या कर रहे हैं?’’
कुछ लोग संशय में हैं कि आखिर क्रिकेट को क्या समझें? खेल या जुआ! हम दोनों से परे तीसरी बात कहते हैं कि क्रिकेट अब एक व्यापार है। व्यापार मतलब कि उसमें एक सीमा तक छल कपट जायज है। फिक्सिंग भी उसमें शामिल है। हम फिक्सिंग वगैरह को लेकर देशद्रोह या गद्दार जैसा शब्द उपयोग नहीं करते। सीधी सी बात है कि जब तुम्हें मालुम है कि सभी न हों पर कोई भी मैच फिक्स हो सकता है तो काहे देख रहे हो क्रिकेट!
आजकल हम क्रिकेट पर लिखते अधिक बोलते ज्यादा हैं! कहीं क्रिकेट की चर्चा हो जाये तो कभी कभार पूछ लेते हैं कि ‘जनाब, यह फिक्सिंग का क्या चक्कर है?’
लोग आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और वेस्टइंडीज के खिलाड़ियों पर शक करते हैं पर अपने देश के क्रिकेट क्लब बीसीसीआई की टीम के खिलाड़ियों को पवित्र मानते हैं। उनकी नज़र में तो केवल क्रिकेट खिलाड़ी ही राष्ट्र की पहचान हैं जिन पर लगी कालिख उनके मन में बैठे राष्ट्रप्रेम को तकलीफ दे सकती है। दरअसल हमारे देश का हर इंसान भारी तकलीफ में जी रहा है। वह सुंदर चीजें, व्यक्ति तथा हालत केवल सपने में देखता है और फिर अपने अंदर बहुत सारे भ्रम पाल लेता है जिनके टूटने का भय उसे हमेशा ही रहता है। ऐसे में अगर हम कह दें कि ‘हमने सुना है क्रिकेट के अब अतंर्राष्ट्रीय मैच फिक्स होते हैं तो लोग ऐसे देखते हैं जैसे कि कोई विदेशी या मूर्ख आदमी बोल रहा है।
हम देखते हैं कि कड़वी सच्चाई से उनकी आखों की चमक कम हो जाती है यह सोचकर कि कहीं यह बात वाकई सच तो नहीं है। लोग अपने देश के क्रिकेट क्लब बीसीसीआई को ऐसे मानता है जैसे कि वह देश की सरकार है जो बिना किसी दबाव के सारे काम करती है। दुनियां की सबसे अमीर क्रिकेट संस्था बीसीसीआई प्रायोजकों की दम पर है जिनके पीछे कंपनियां हैं। कुछ ए हैं तो कुछ बी और कुछ सी। यह विज्ञापन देने वाली कंपनियंा हैं जिनके प्रचार के लिये बनी फिल्मों में क्रिकेट खिलाड़ी अभिनयक कर चुके होते हैं। संदेह किया जाता है कि यह अपने उत्पाद के प्रचार मॉडलों को खिलाड़ी के रूप में टीमो के लिये फिक्स करती हैं। एक डी कपंनी भी है जिस पर आरोप है कि वह तो खेल ही फिक्स करती है। इस कंपनी को तो कहना ही क्या? वह देश की नहीं है और कार्यकर्ता देश के ही होते हैं जो इतनी आसानी से नहीं मिलते।
लोग हैरान हैं। क्या सच, क्या झूठ! एक मित्र ने पूछा-‘आखिर बताओ, क्या सच समझें? यह चैनल वाले तो कभी बल्ले बल्ले तो कभी फिक्सिंग फिक्सिंग करते हैं। हां, अपने देश के खिलाड़ियों पर सभी खामोश हैं, इसे क्या समझें!’
हमने उससे कहा कि ‘कम से कम एक बात अच्छी है कि वह बल्ले बल्ले के बाद कम से कम फिक्सिंग की बात तो करते हैं। अब यह जरूरी है कि वह निष्कर्ष प्रस्तुत करें! यह उनका काम नहीं है। तुम स्वयं देखो और देखकर तय करो कि देखना है कि नहीं देखना! जहां तक बीसीसीआई की टीम जिसे तुम देश की मान रहे हो उस पर खामोश रहना ही बेहतर हैं। भला कोई अपने परिवार के बच्चों की बुराई कोई बाहर कहकर कोई उनके विरुद्ध दुष्प्प्रचार करता है? हां, दूसरे परिवार के बच्चों की बुराई कर अपने बच्चों को यह हर कोई समझाता है कि वह उससे बचें।’
बहरहाल यह बल्ले बल्ले और फिक्सिंग मिक्सिंग का मैच अब चालू आहे।
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Sunday, March 13, 2011

काम और बहस-हिन्दी शायरी (work and disscusion-hindi shayri)

ज़माने के पहरेदार सो रहे हैं,
हम भी अपने, मतलब में खो रहे हैं,
किसकी शिकायत किससे करें
अपनी हिफाजत का बोझ यूंॅ ही ढो रहे हैं।
अपने हकों का अहसास सभी को है,
मगर गैरजिम्मेदारी के बीज हम बो रहे हैं।
काम करने से आसान है जोरदार बहस करना
शब्दों से सजे कागज अब कूड़ेदान के दोस्त हो रहे हैं।
पर्दे पर आंख, कान में गीत और रिमोट सभी के हाथ में
मनोरंजन करते लोग, बस कभी यूं हंसते और कभी रो रहे हैं।
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