हमने अपने अरमान टिकायें जिनके कंधों पर
उनके कदम मंजिल से पहले हमेशा लड़खड़ा जाते है,
उनकी जुबान से टपकते लफ्ज़ मोतियों की तरह
मगर उनसे हमारे सपने नहीं पूरे हो पाते हैं।
कहें दीपक बापू जान पहचान में न मिली वफा कभी
भटकते हैं जब हम राह, अजनबी रास्ता दिखाते हैं।
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उनके कदम मंजिल से पहले हमेशा लड़खड़ा जाते है,
उनकी जुबान से टपकते लफ्ज़ मोतियों की तरह
मगर उनसे हमारे सपने नहीं पूरे हो पाते हैं।
कहें दीपक बापू जान पहचान में न मिली वफा कभी
भटकते हैं जब हम राह, अजनबी रास्ता दिखाते हैं।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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