Wednesday, August 13, 2014

अखबार पढ़ने के अहसास-हिन्दी कविता(akhbar padhne ke ahasas-hindi poem)



जिस दिन अखबार नहीं आता
होता है खुशनुमा अहसास
कोई बुरी खबर शायद नहीं बनी है।

बहस करते शब्द नहीं होते सामने
अच्छा लगता है सोचकर कि
अक्लमंदों में कहीं भी नहीं ठनी है।

डरावने चित्र आंखों से परे होते
तब होती है दिल को तसल्ली
कहीं फैली नहीं सनसनी है।

कहें दीपक बापू इंद्रियों का मौन
रखने के लिये
शायद इसलिये कहा जाता है
वरना स्मृतियों में तो
बस दर्द ही सहा जाता है,
लौटते हैं जब खबर
पढ़ने के विराम से
टूटी खबरें कराती अहसास
ज़माने में कहीं नहीं शांति
सभी जगह तनातनी है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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