आज पूरे देश में गणेश चतुर्थी का पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है।
भगवान श्रीगणेश जी को बुद्धि तथा विवेक
प्रदान करने वाली शक्ति माना जाता है।
किसी भी हवन, यज्ञ और पूजा में सबसे पहले गणेश जी का स्मरण इसलिये किया जाता है ताकि
यजमान की आंतरिक चेतना जाग्रत रहे। जैसे
कि कहा जाता है कि मनुष्य की पहचान उसका मन है। वही उसका स्वामी है। देह का वास्तविक संचालक तो मन ही है जो मन और
मस्तिष्क से संचालित है। मस्तिष्क में बुद्धि और विवेक का निवास स्थान है। इसलिये
जब मनुष्य में बुद्धि और विवेक बेहतर तरीके से
काम करता है तब उसे जीवन में अपार
आनंद की अनुभूति होती है।
गणेश जी को देवताओं में सर्वोच्च इसलिये माना जाता है क्योंकि उनकी शक्ति
का आधार बौद्धिक कौशल है। उनकी मातृ पितृ
भक्ति भारतीय समाज के लिये एक महान उदाहरण है।
इससे भी ज्यादा उनकी एक सभ्य समाज के निर्माण से जो प्रतिबद्धता रही वह
अनोखी है जो कि महाभारत ग्रंथ की रचना में उनके हस्तलिपीय सहयोग से प्रकट
हुई। उन्होंने महाभारत ग्रंथ की रचना में
अपना महान योगदान दिया जिसमें से श्रीमद्भागवत गीता प्रकट हुई जिसमें वर्णित
तत्वज्ञान आज भी विश्व के ज्ञान साधना के प्रति रुचि रखने वाले लोगों को आकर्षित
करता है। वैसे महाभारत के रचयिता महर्षि
वेदव्यास है पर उसे भगवान श्रीगणेश जी अपनी हस्तलिपि का प्रसाद प्रदान किया। यही
कारण है कि जहां साकार भक्ति के उपासक भगवान श्रीगणेश जी के मूर्तिमान स्वरूप के
सामने श्रद्धा से मस्तिष्क झुकाते हैं वही ज्ञान साधक उनके गुणों का स्मरण कर आनंद
में लीन हो जाते हैं।
गणेश के मूर्तिमान रूप में जहां हाथी विराजमान है वहीं उनका वाहन चूहा है। अगर ज्ञान के नेत्रों से देखें तो यह बात सामने
आती है कि इस संसार मेें छोटे बड़े सभी का महत्व है। गरीब अमीर, बड़ा छोटा और ऊंच
नीच का भेद कभी नहीं करना चाहिये। अगर भगवत्कृपा हो तो चूहा हाथी का वजन उठा सकता
है। भगवत्संपर्क हो जाये तो हाथी के भारी सिर में ज्ञान के सूक्ष्म तत्व
स्थापित हो सकते हैं।
जब सारे देवताओं के बीच विश्व का चक्कर शीघ्र चक्कर लगाकर अपनी श्रेष्ठता
साबित करने की होड़ हुई तो गणेशजी ने अपने माता पिता की परिक्रमा कर ही वैश्विक
विजय का उदाहरण प्रस्तुत किया। इतना ही नहीं जब वेदव्यास ने महाभारत की रचना का
व्रत लिया तो भगवान श्रीगणेश जी ने एक ही बैठक में उनको हस्तलिपिकीय सहयोग देने का
वादा पूरा किया। उनकी लीला से यही संदेश
मिलता है कि अध्यात्मिक सक्रियता के लिये बहिर्मुखी होकर बाहर विचरण करने से अलग
होकर एकांत में भी साधना की जा सकती है। भगवान श्रीगणेश जी की लीला और चरित्र
एकांत साधना के महत्व को प्रतिपादित करता है।
अपनी लीलाओं से सभी को बुद्धि और विवेक का संदेश प्रदान करने वाले भगवान
श्रीगणेश जी को हम नमन करते हैं।
इस गणेश चतुर्थी के अवसर पर समस्त ब्लॅाग लेखकों तथा पाठकों को बधाई। हम कामना करते हैं कि भगवान श्रीगणेश जी सभी को
मन तथा विचारों में पवित्र आधार स्थापित करें।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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