Saturday, December 20, 2014

नयी रौशनी और पुराना दीया-हिन्दी कविता(nayi roshani aur purana deeya-hindi poem)



कभी ढेर सारे सोने का
लालच मेरे दिल में
चुभा रहे हो।

कभी अच्छे पकवान
आंखों के सामने सजाकर
जीभ लुभा रहे हो।

कहें दीपक बापू सच बताओ
नयी रौशनी का दिखाओगे
मेरे घर का जलता हुआ
पुराना दीया जो बुझा रहे हो।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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