बंद कर दिये
उन्होंने सोच के दरवाजे
कुछ करने के इरादे भी
दिल से निकाल दिये हैं।
कहें दीपक बापू गुलामी पर
फिदा हो गये जो लोग
उन्हें आजादी का मतलब
नहीं समझा सकते
बाहर से आती हवाओं के
खौफ से उन्होंने
घर के दरवाजे
बंद कर लिये हैं।
-----------
जिंदगी का सच-हिन्दी कविता
--------
भरोसे पर टिकाये रखी
हमेशा ही जिंदगी की इमारत
वादों की बरसात में भी
हम खूब नहाये हैं।
बहुत से जादूगर देखे
ख्वाबों का सागर बनाने वाले
जिसके किनारे कभी
स्वयं वह न आये हैं।
कहें दीपक बापू समय की धारा में
हम यूं ही बहते रहे,
किसी ने नहीं सुनी
हम अपनी कहते रहे,
सर्वशक्तिमान ने
जितना लिखा भाग्य
सच यह है कि उसी के सहारे
यहां तक आये हैं।
---------------------
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका
६.ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
९.शब्द पत्रिका
No comments:
Post a Comment