Saturday, November 28, 2015

जब तक छिपा सच-हिन्दी कविता(Jab Tak Chhipa Sach-Hindi Kavita)

समय की बात है
प्रतिष्ठा के शिखर पर
सुंदर चेहरा दिखाकर
चढ़ जाते हैं।

वाणी से निकलती
जब बेसुरी आवाज
बदनामी के रसातल की तरफ
बढ़ जाते हैं।

कहें दीपकबापू नीयत के खेल में
तभी तक चलती चालाकी
जब तक सच छिपा
पोल खुलते ही बड़ी छवि के पेड़
ताश के पत्ते की तरह
झड़ जाते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Thursday, November 19, 2015

अपना दिल बहलायें-हिन्दी शायरी(Apna Dil Bahlayen-Hindi Shayri)


सपनों के पांव नहीं होते
कब तक सोच की
बैसाखियों के सहारे चलायें।

ख्वाबों का रास्ता नहीं मिलता
कब तक अंधेरे में
ख्यालों का चिराग जलायें।

कहें दीपकबापू सच से
कब तक मुंह छिपाओगे
कुछ देर भले ही
सपने और ख्याल से
अपना दिल बहलायें।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
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Monday, November 09, 2015

वानर और इंसान-हिन्दी कविता(Insan aur vanar-Hindi kavita,Men Monkey-Hindi poem)


वानर का इन्सान
अभिनय करे
कलाकार कहलाये।

वानर जब करे
इंसान जैसा करतब
तब भी वानर कहलाये।

कहें दीपकबापू अदायें बिकती
बाज़ार में महंगे भाव
कोई हंसे कोई खाये घाव
हम तो इंसान के साथ
वानर के दिल को भी सहलायें।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Monday, November 02, 2015

चंदन के पेड से सांप जैसे लिपटे, भ्रष्टचारी समाज में वैसे चिपटे-दीपकबापू वाणी(Chanda ke ped se saanp lipte Bhrashtachari Samaj mein vaise chipte-DeepakBapuwani)

आदर्श की चर्चा जब बढ़ती, बात मनाने की जिद्द भी चढ़ती है।
दीपकबापूभलाई की दुकान में, दाम के मोल से दया चढ़ती है।।
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घर में सभी विराजते देवरूप, सड़क पर  आकर दानव हो जाते।
दीपकबापूभलाई बिकती नहीं, प्रसिद्ध पाखंडी  मानव हो जाते हैं।।
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कहीं कातिल नायक कहलायें, कहीं शिकार शहीद बन जायें।
दीपकबापूमौत के खेल में, कलमकार भी मुर्दा शब्द सजायें।।
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घर में ही स्वर्ग का विज्ञापन, पढ़कर मन चहक ही जाता है।
दीपकबापूआंखें खुली बुद्धि बंद, इंसान बहक ही जाता है।।
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बड़े बोल पर्दे पर आकर बोलें, चरित्र से छोटे भी होते लोग।
दीपकबापूजीभ से चबाते शब्द, अर्थ में हो जैसे गणित योग।।
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कहीं रोटी कहीं मांगते भात, कहीं मिले कही पड़ जाती लात।
दीपकबापूयाचक रूप में, अपमान लगती मान की भी बात।।
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कभी राम कभी हनुमान भजते, कभी सांई नाम से उलझें।
दीपकबापूओम हृदय में रखें, तत्वज्ञान से बैर को सुलझें।।
.................................
सबसे कहें छोड़ स्वयं मोह जोड़ें, धर्म बनायें पेड़ धन फल तोड़ें।
दीपकबापूरहें महल में त्यागी, दान से दयालुता का नल जोड़ें।।
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अंग्रेजी के ढेर सारे शब्द जोड़े, भाषा के पांव विकास पथ पर मोड़े।
दीपकबापू नहीं समझते हिंग्लिश, शब्दों के अर्थ जैसे लंगड़ाते घोड़े।।
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चंदन के पेड से सांप जैसे लिपटे, भ्रष्टचारी समाज में वैसे चिपटे।
दीपकाबापू ईमानदार वीरों जैसे, अभावों में त्याग से लड़ते निपटे।।
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मदिरा से मनमस्ती आती अगर, मदिरालयों में स्वर्ग दिख जाता।
दीपकबापूविष का नाम अमृत, बर्बादी का नाम मजा लिख लाता।
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दर्द बिकता महंगा बाज़ार में, रोती कवितायें लिखना सरल।
दीपकबापूहास्य रस में नहायें, न पीयें आंसुओं का गरल।।
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खाने में सब्जी हो या मांस, भरे पेट वालों की बहस जारी।
दीपकबापूबाज़ार नहीं जाते कभी, जताते हल्के तर्क भी भारी।।
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 गैरों पर फब्तियां कसना सहज, अपने गिरेबां में कोई नहीं झांकता।
दीपकबापूअपने दर्द पर रोयेंपराये पर हर कोई हंसी टांकता।।
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