देवता बनने की के प्रयास में
इंसान बड़े अपराध भी
कर जाते हैं।
भय के प्रसाद बांटकर
पुण्य के सागर में
तर जाते हैं।
कहें दीपकबापू नये जमाने में
पहरेदारों के आसरे
कांचघर के निवासी
राहगीरों पर फैंकते पत्थर
घायल मौन पीड़ा लेकर
घर जाते हैं।
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यह अव्यवसायिक ब्लॉग/पत्रिका है तथा इसमें लेखक की मौलिक एवं स्वरचित रचनाएं प्रकाशित है और इन रचनाओं को अन्य कहीं प्रकाशन के लिए पूर्व अनुमति लेना जरूरी है। ब्लॉग लेखकों को यह ब्लॉग लिंक करने की अनुमति है। इस पर अध्यात्म विषय पर चिंतन,साहित्यक कहानी, व्यंग्य,कवितायें और सामाजिक विषयों पर आलेख प्रकाशित किये जाते हैं। सभी रचनायें मौलिक हैं तथा उनके सर्वाधिकर लेखक और संपादक के पास सुरक्षित है। लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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