Sunday, October 05, 2008

जब मन की हलचल बेजार कर देती है-हिन्दी शायरी

दिल के अन्दर चलती हुई हलचल
जब बेजार कर देती है
तब कुछ शब्द लिखने को
हो जाता हूँ बेताब
यही एक रास्ता लगता है बचने के वास्ते
अपने अन्दर मच रहे कुहराम से
डर लगता है मुसीबत की नाम से
अगर अपनी सोच को
बाहर जाने का रास्ता नहीं दिखाता
तो बन जाता है जला देने वाला तेजाब

अपनी कविता लिखकर उबर आता हूँ
शब्दों को फूलों की तरह सहलाता हूँ
उनसे ज़माना उबर आयेगा
यह कभी ख्याल नही आता
कोई देगा शाबाशी
यह ख्याल भी नहीं भाता
अपनी बैचेनी से निकलना
भला किसी क्रांति से कम है
लोगों की क्या सोचें
उनको भ्रान्ति के ढेर सारे गम हैं
ख्वाहिशों की अंधे कुँए में
डूबते हुए लोग और
उसमें धँसने को तैयार हैं
आना कोई बाहर नहीं चाहता
दिखते जरूर हैं आज़ादी पाने को बेताब

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