Sunday, October 12, 2008

सर्वशक्तिमान के दरबार में क्लर्क और हीरो-हास्य व्यंग्य कविता

हीरो और क्लर्क ऐक ही दिन
और ऐक ही समय पर
मंदिर में करने दर्शन करने पहुँचे
क्लर्क तो रोज वहाँ जाकर
अपना शीष नवाता था
नहीं करता कोई मिन्नत
न थे उसके सपने भी ऊँचे
उस दिन वहाँ सुरक्षाकर्मियों और
हीरो के प्रशंसकों की भीड़ थी
क्लर्क की समस्या यह थी कि
अपने इष्ट तक कैसे पहुँचे
उसने मुख्य चरण सेवक को पुकारा
यह सोचते हुए की वह तो जानते हैं
पूरी करेंगे मेरी आस
इससे पहले उसने नहीं डाली थी
कभी भी उनको घास
रोज आता और दर्शन कर चला जाता
कभी नहीं गया उनके पास
उनसे अब की उसने याचना और कहा
'हम तो यहाँ रोज आते हैं
आज दरवाजे बंद हैं
अपने को मुश्किल में पाते हैं
आप ही थोड़ी मदद कर दें तो
अपने इष्ट के दर्शन करने पहुँचे'

वह बोले
'मालूम है कि तुम रोज आते हो
और कभी हमें प्रणाम भी नहीं कर जाते हो
अपना अहसान क्यों जताते हो
हो तो ऐक मामूली क्लर्क
हीरो से पहले ही दर्शन करने की
इच्छा मन में पालते हो
कभी सोचा है
वह तो हर माह बहुत बडी रकम
चढ़ावे में भेजता है
तुम बताओ आज कितना
दान-पेटी में डाल जाते हो
फिर तुम्हारे पास है क्या
उसके पास सब है
बंगला,गाड़ी और दौलत के अंबार
उसके परिवार के सदस्यों का
देश-दुनिया में नाम है
ऊपर वाले की उस पर कृपा अपार है
तुम बाद में आना
समझ लो नीली छतरी वाले की मर्जी
हम तो चले, देखो वह आ पहुँचे'


क्लर्क मुस्कराया और फिर
अपने इष्ट को बाहर से किया नमन
फिर आने का विचार कर
निकल गया किये सिर ऊँचे

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