बड़े शहर के विशाल मकान में रहने वाला वह शख्स एक दिन बरसात के दिनों मे गांव की ओर जाने वाली पगंडडी पर पानी मे अंधेरे में कांपते हुए कदम रखता हुआ आगे बढ़ रहा था। दरअसल शाम के समय वह बस मुख्य सड़क पर उतरा था उस समय बरसात धीरे शुरु हुई थी। उसे गांव जाना था जिसका रास्ता एक पगडंडी थी। बरसात के कारण वह वहीं खड़ी एक दुकान पर कुछ देर खड़ा हो गया। जब बरसात बंद हो गयी तो उसने वहां दुकानदार गांव का रास्ता पूछा तो पगडंडी की तरफ इशारा करते हुए कहा कि‘यहां से एक मील दूर जाने पर वह गांव आ जायेगा।
वह गांव वहां से कम से कम चार किलोमीटर दूर था। इधर सूरज भी एकदम डूबने वाला था। वह जल्दी जल्दी चल पड़ा कुछ दूर जाने पर उसे कीचड़ दिखाई दी पर वह सूखी जमीन पर कदम रखता हुआ आगे बढ़ रहा था। इधर सूरज भी पूरी तरह से डूब गया। अंधेरे में उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। दूर दूर रौशनी भी नहीं दिख रही थी। चारों तरफ पेड़ और छोटे पहाड़ के पीछे छिपे उस गांव की तरफ जाते हुए उसका हृदय अब कांपने लगा था। अनेक जगह वह फिसला। अपने जूत भी उसे अपने हाथ में ले लिये ताकि फिसल न जाये। रास्ते में वह अनेक बार चिल्लाया-‘कोई है! कोई मेरी आवाज सुन रहा है।’
वह फिसलता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था। एक समय तो उसे लगा कि उसका अब कहीं गिरकर अंत हो जायेगा
वह अब पीछे नहीं लौट सकता था क्योंकि मुख्य सड़क बहुत दूर थी और वह आशा कर रहा था कि बहुत जल्दी गांव आ जायेगा। अब तो उसे यह भी पता नहीं चला रहा था कि गांव होगा कहां? कोई कुछ बताने वाला नहीं था।
न दिशा का ज्ञान न रास्ते का। चलते चलते अचानक वह एक झौंपड़ी के निकट पहुंच गया। वहां एक मोमबती चल रही थी। उसे देखकर उस शख्स ने राहत अनुभव की। वहां खड़े एक आदमी से उसने उस गांव का रास्ता पूछा- उस आदमी ने इशारा करके बताया और उससे कहा-‘आपके चिल्लाने की आवाज तो आ रही थी पर मेरी समझ में नहीं आ रहा था। अब गांव अधिक दूर नहीं है। बरसात बंद हो गयी है। मैं मोमबती लेकर खड़ा हूं आप निकल जाईये थोड़ी देर में आपको वहां रौशनी दिखाई देगी। बिजली नहीं भी होगी तो भी लोगों की लालटेन या मोमबतियां जलती हुई दिखाई देंगी।’
वह मोमबती लेकर खड़ा। उसकी रौशनी में उसे पूरा मार्ग दिखाई दिया। कीचड़ थी पर वहां से निकलने के लिये कुछ सूखी जमीन भी दिखाई दी। वह धीरे धीरे चलकर गांव में अपने रिश्तेदार के यहां पहुंच गया।
रिश्तेदार ने कहा-‘हमें आपके घर से फोन आया था कि आप आ रहे हैं। इतनी देर न देखकर चिंता हो रही थी। आपने हमें इतला दी होती तो हम लेने मुख्य सड़क पर आ जाते। यह रास्ता खराब है। इतने अंधेरे में आप कैसे पहुंचे।’
उस शख्स ने आसमान में देखा और कहा-‘सच तो यह है कि इस अंधेरे से वास्ता नहीं पड़ता तो रौशनी का मतलब समझ में नहीं आता। शहर में हम इतनी रौशनी बरबाद करते हैं एक बूंद रौशनी की कीमत ऐसे अंधेरे में ही पता लगती है।’
वह रिश्तेदार उसकी तरफ देखने लगा। उसने लंबी सांस भरकर फिर कहा-‘एक मोमबती की बूंद भर रौशनी ने जो राहत दी उसे भूल नहीं सकता। जाओ, पानी ले आओ।’
वह रिश्तेदार उस शख्स का चेहरा गौर से देख रहा था जो आसमान में देखकर कुछ सोच रहा था।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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