दिन भर अपने लिए साहब शब्द सुनकर
वह रोज फूल जाते हैं।
मगर उनके ऊपर भी साहब हैं
जिनकी झिड़की पर वह झूल जाते हैं।
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वह रोज फूल जाते हैं।
मगर उनके ऊपर भी साहब हैं
जिनकी झिड़की पर वह झूल जाते हैं।
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नयी दुनियां में पुजने का रोग
सभी के सिर पर चढ़ा है।
कामयाबी का खिताब
नीचे से ऊपर जाता साहब की तरफ
नाकामी की लानत का आरोप
ऊपर से उतरकर नीचे खड़ा है,
भले ही सभी जगह साहब हैं
बच जाये दंड से, वही बड़ा है
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साहबी संस्कृति में डूबे लोग
आम आदमी का दर्द कब समझेंगे।
जब छोटे साहब से बड़े बनने की सीढ़ी
जिंदगी में पूरी तरह चढ़ लेंगे।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwaliorसभी के सिर पर चढ़ा है।
कामयाबी का खिताब
नीचे से ऊपर जाता साहब की तरफ
नाकामी की लानत का आरोप
ऊपर से उतरकर नीचे खड़ा है,
भले ही सभी जगह साहब हैं
बच जाये दंड से, वही बड़ा है
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साहबी संस्कृति में डूबे लोग
आम आदमी का दर्द कब समझेंगे।
जब छोटे साहब से बड़े बनने की सीढ़ी
जिंदगी में पूरी तरह चढ़ लेंगे।
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