शानदार इमारतों के नीचे
दबे पड़े हैं, बुनियाद में जो पत्थर
वह चमकदार नहीं होते।
अमीर इंसानों की दौलत के आंकड़े
खातों में लिखे होते
पर उसको बढ़ाने वाले मेहनतकशों के
पसीने की बूंदों के हिसाब नहीं होते।
रौशनी फैली है जहां तक
वहां तक पूरा जहां चमक रहा है
उसे देखने वालों को
अंधेरों के अहसास नहीं होते।
जितने लोग जमीन पर चलते हैं
आकाश में उतने परिंदे नहीं होते।
नजर और अहसास सभी के अलग हैं
कोई जुटा कर भी दौलत
खुशी के लिये भटकता है
जो मोहताज हैं
वह भी रुपयों के हिसाब में अटकता है
तमाशों में करते हैं
लोग अपनी दौलत बरबाद
पर नहीं कर सकते
किसी गरीब का घर आबाद
घूम रही है अमीरी जिनके चारो ओर
नहीं पाते चैन तब तक
जब तक गरीब के आंसु
गाल पर बहते नहीं होते।
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अभावों में जीते हैं जो लोग
उनके आंसुओं का हिसाब
कौन रखता है।
अमीर की तरफ ताक रहे हैं सभी
कब उसकी आंखों में दर्द दिखे
तो उसे हमदर्दी दिखायें
वही तो है जो
दर्द का रुपयों में हिसाब करता है।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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