Wednesday, July 28, 2010

बंधी तलवार शैतान की कमर में-व्यंग्य कवितायें (badhi talwar shaitan ki kamar men)

मिटा रहे हैं निशान कमजोरों का
छिपा रहे है हर सबूत चोरों का।
क्या मिटायेंगे गरीबों की भूख,
ब्याज से घर सजा रहे सूदखोरों का।
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अमन का पैगाम दे रहे ज़माने भर में,
कातिलों की तस्वीर सजाई अपने धर में।
कसूर की सजाये केवलं कागज पर लिख ली,
मगर जिंदा हैं वही पहरेदार जी रहे जो डर में।
चौराहों पर होती है चर्चा हादसों पर जमकर,
खौफ जिंदा है, बंधी तलवार शैतान की कमर में।
सच से छिप रहे हैं, ज़माने को हिम्मत दिलाने वाले,
उनकी नाव हो जाती पार, कभी नहीं फंसी भंवर में।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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