दुनियां के लोग जिस तरह
र्दौलत और शौहरत के दीवाने हैं
उसे देखकर नहीं लगता कि
जाति, धर्म और भाषा के लिये होने वाले
झगड़े सच में हो पाते हैं,
कई चेहरे नकाब पहनकर
इधर भी लड़ते हैं तो उधर भी,
अमन के लिये जंग लड़ते हैं सभी
आम आदमी पहले उनमें मिक्स हो जाते हैं,
पर फिर उसी झगड़े को फिक्स पाते हैं।
-------------
खबरची ने ऊंची आवाज में कहा
‘‘कल रात बहुत झगड़ा हुआ
कई लोग पिटे,
कई शीशे के सामान गिरकर मिटे,
पत्थर चले जमकर,
गालियां दी गयी तनकर,
आओ सुनो, मेरे पास पूरी खबर है।’’
आम आदमी ने कहा
‘‘पहले यह बताओ
इस झगड़े को किसने किया था प्रायोजित,
फिर बताना कहां और कब हुआ आयोजित,
आजकल के लोगों के इतनी दम कहां है कि
बिना पैसे खींच पायें झगड़ा जैसे रबड़।’’
-------------
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
-------------------------
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
-
*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
No comments:
Post a Comment