Tuesday, November 23, 2010

इंसानी मुखौटे-हिन्द व्यंग्य कविता (insani mukhaute-hindi shayari)

मुखौटे कभी शब्द बोलते नहीं है
शब्दों को तोलते नहीं नहीं है,
कातिल का राज खोलते नहीं हैं।
दौलत मंद और शोहरत वाले
अपने चेहरे पर दाग लगाना
पसंद नहीं करते,
ज़माने पर काबू करने का
दंभ भी भरते
इसलिये सिंहासन में बिठा देते हैं
इंसानी मुखौटे
चढ़ा देते हैं शिखर पर उन इंसानों को
जो उनके इशारों के बिना
डोलते नहीं हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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