Sunday, December 05, 2010

ख्वाबी पुलाव और सपनों का गोश्त-हिन्दी कविता (khvab ke purlav aur sapanon ka goshta-hindi kavita)

व्यंग्य लिखने का
अब मन नहीं करता है,
क्योंकि आज का सच ही
अट्टाहास करने लगता है।
कमबख्त
बेईमानी और भ्रष्टाचार पर
अब क्या अफसाना लिखें,
सामने खड़े हैं
तलवार लेकर कातिल
उनको कैसे ताना कसते दिखें,
जिम्मा है जिन पर शहर का,
ठेका है उनके पास बहपाना कहर का,
क्या ख्वाबी पुलाव पकायें,
जब अपने सपनों का गोश्त
सरेआम बाज़ार में बिकता है।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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