Monday, May 02, 2011

हिन्दी हास्य कविता-भ्रष्टाचार हटाने का कोई जंतर मंतर नहीं है (bhrashtachar hatane ka koyee jantar mantar nahin hai-hindi hasya kavita)

पोते ने का दादाजी से
‘कल हम सब बच्चे अपनी शिक्षिका के साथ
भ्रष्टाचार विरोधी रैली में जायेंगे,
खूब जोर से नारे लगायें,
अपनी कोशिश से इस देश में
 ईमानदारी  का युग फिर लायेंगे।’

सुनकर दादाजी  ने कहा
‘‘बेटा,
तुम जाओ हमें आपत्ति नहीं
पर शिक्षिका ने तुम्हें
भ्रष्टाचार का मतलब समझाया भी है  कि नहीं
लगता  नहीं वह भी जानती होगी,
बस नारे लगाना ही क्रांति मानती होगी,
सच बात तो यह है कि
इस संसार में भ्रष्टाचर मिटा सके,
ऐसा कोई जंतर मंतर नहीं है,
संसार के सारे इंसानों को
अपने कर्म में खोट भी लगता है शिष्टाचार
दूसरे का हर कर्म माने भ्रष्टाचार
सोच कां अंतर वहीं हैं,
हर कोई
पहले दूसरे से सुधरने की आशा करे,
फिर अपने भी उसी राह पर चलने का दिल में भाव भरे,,
यही बेईमानी सभी में आती है,
दूसरा शख्स झौंपड़ी में ही मरे,
अपनी इमारत चमचमाती होने  की
चाहत हर कोई धरे,
यही सोच भ्रष्टाचार की तरफ ले जाती है,
बड़े होकर
अगर तुम चल सको सत्य की राह
समझ लो पूरी हो जायेगी ईमानदारी लाने की चाह,
ऐसा ही हर कोई करे
तो भ्रष्टाचार मिट जायेगा,
वरना पहले से ही बढ़ा रहा है मुंह
सुरसा की तरह
अब और भी बढ़ायेगा,
हम भले उसे मिटाने के नारे लगाते
जीवन गुजारते जायेंगे।’
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लेखक संपादक-दीपक "भारतदीप", ग्वालियर 
writer and editor-Deepak "Bharatdeep" Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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