यह शर्म की बात है कि एक टीवी चैनल ने दिल्ली में फैली गंदगी के नाम पर वहां के निवासियों के यहां वहां पेशाब करने का स्टिंग ऑपरेशन किया। यह दूसरा ऐसा स्टिंग ऑपरेशन हैं जिसमें पिशाब मुद्दा बना है। इससे पहले पुणे के एक टिकिया बेचने का ठेला चलाने वाले का स्टिंग ऑपरेशन प्रस्तुत किया गया था। उसे उस लोटे में पिशाब करते हुए दिखा गया था जिससे वह अपने ग्राहकों को पानी पिलाता था।
दिल्ली की गंदगी में जनभागीदारी दिखाने के लिये पेशाब करते हुए पकड़े गये लोगों के बयान दिखाये गये। यह दिखाना अनुचित लग रहा था। कुछ सवाल हुए जिनसे क्षोभ हुआ तो हंसी भी आई।
एक बुजुर्ग से पूछा गया कि ‘आप तो बुजुर्ग हैं फिर ऐसे खुले में पेशाब क्यों करते हैं।’
हम तो यह कहेंगे कि जितनी उनकी उम्र थी उसे देखते हुए तो यही कम नहीं था कि वह स्वयं पिशाब कर रहे थे। अपने स्वास्थ्य का स्तर अभी भी स्वयं चलने लायक बनाये रखा था। इसके अलावा वह कैमरे के सामने आकर भी अपने हृदय को मजबूत रख सके, यह बात कम प्रशंसनीय है।
कैमरे के सामने पकड़े गये लोगों का चेहरा भारी तनाव में था। ऐसा तनाव पैदा करना हमारे हिसाब से अपराध है। यह ठीक है कि कहीं खुले में पिशाब करना ठीक नहीं है पर मुश्किल यह है कि देश का विकास बहुत हुआ है और उसने जनसुविधाओं को लील लिया है। उसके अलावा उसने लोगों की सहनशीलता को भी समाप्त कर दिया है। लोगों को अपनी जीवन की हर आवश्यकता पूरी करने के लिये पहले से अधिक दूर जाना पड़ता है। शहर अब बड़े हो गये हैं और रोजगार की स्थितियों में भारी बदलावा आया है। आदमी के पास साइकिल हो या कार या स्कूटर उसकी दैहिक क्रियायें पहले की तरह हैं। आदमी लोहे पर लोहा खरीदता जा रहा है, पत्थर सजा रहा है पर उसकी देह लोहा की नहीं बनी और न दिल पत्थर की तरह मजबूत हो सकता है। दरअसल मलमूत्र के त्याग से मनुष्य शरीर तनाव मुक्त होता है।
आदमी का तो ठीक है स्त्रियों के साथ भी समस्या अधिक विकट होती जा रही है। स्त्रियों पहले से अधिक घर से बाहर निकलने लगी हैं। इसका कारण यह है कि कार्यस्थल और घर की दूरियां बढ़ने से वह पुरुषों की घर की जिम्मेदारी में हिस्सा बंटाने के लिये जहां सामान वगैरह खरीदने जाने लगी हैं तो वहीं कमाने के लिये उनको भी अधिक दूरी वैसे ही तय करनी पड़ती है जैसे पुरुष करते हैं। उनके लिये तो वैसे भी जनसुविधा केंद्र कम बने हैं। स्त्रियों के विकास की बात बहुत करने वो हैं पर उनके लिये अधिक से अधिक जनसुविधा केंद्र बनाने की कोई मांग नहंी करतां।
कहने का अभिप्राय यह है कि जो पहले से ही उपलब्ध जनसुविधा केंद्र थे उनकी संख्या कई गुना बढ़ना चाहिए था पर हो उल्टा हो रहा है। अनेक जगह पुराने जनसुविधा केंद्र लापता हो गये हैं और जो नये बने होंगे वह उनसे कम ही होंगे। मुश्किल यह है कि जनता की चिंता करने वाले जितने भी लोग हैं उनके सामने शायद ऐसी समस्यायें नहीं आती इसलिये वह इसकी चिंता नहंी करते। पत्रकारिता करने वालों को भी शायद इसका आभास नहीं है कि सामान्य आदमी के लिये संघर्ष बहुत आसान नहीं है और ऐसे में उसे जनसुविधा केंद्रों अधिक निर्माण होना चाहिए। एक बात तय है कि जो देश की समस्याओं के बारे में सोचते हैं या प्रचार करते हैं उनमें से सभी के पास पेट्रोल चालित वाहन होंगे। पैदल या साइकिल पर शायद कोई चलता होगा इसलिये उनको नहीं पता शरीर के अधिक संचालन से पसीना और पेशाब शरीर से बाहर अधिक निकलता है। इनमें शायद ही किसी ने जिंदगी में ठेला चलाकर देखा होगा। दोष उनका नहीं है। उनके मस्तिष्क तथा हृदय में संवेदनाओं का प्रवाह केवल अपने स्वार्थों तक ही सीमित है। उनका दोष नहीं है इस पूरे समाज की स्थिति यही है। गरीब और मजदूर की उपस्थिति को यहां मनुष्य की तरह देखा ही कहां जाता है?
अभी तक हम लोग विकास का सपना अमेरिका जैसा देख रहे हैं। पता नहीं वहां जनसुविधा केंद्रों की स्थिति क्या है? अलबत्ता अमेरिका में आबादी कम है फिर वहां के दृश्य हम टीवी या फिल्मों पर देखते हैं उससे तो लगता है कि शायद वहां जनसुविधा केंद्र पर्याप्त मात्रा में होंगे। मगर हमारे देश में विकास उनको लील रहा है।
हमारे एक दोस्त ने हमसे मजेदार बात कही कि ‘‘मैं जब घर से निकालता हूं तो दो चीजें नहीं भूलता। एक तो पानी की बोतल साथ लेना दूसरा निकलने से पहले अपने जलविकार निष्कासित करना। मार्ग में प्यास और पेशाब का संकट अत्यंत तनाव का कारण बनता है।’’
इधर हम स्वास्थ्य विशेषज्ञों की इस चेतावनी को अनदेखा कर रहे हैं कि हमारे देश में चालीस प्रतिशत से अधिक लोग उच्चरक्तचाप के शिकार हैं और इनमें से कई तो इसे जानते भी नहीं। दरअसल पेशाब उच्च रक्तचाप को कम करता है। फिर पेशाब करते समय जानवर तक को मारना वर्जित है तो फिर इंसान की बात ही क्या? अगर इस तरह आपॅरेशन करते हुए किसी का पेशाब बंद हो गया तो उसके लिये खतरनाक भी हो सकता है। दूसरा यह भी कि शारीरिक श्रम करने पर जहां बाहर पसीना निकलता है वहीं देह को मौजूद जल भी निकासी की तरफ बढ़ता है। यह बात समझना चाहिए। कुछ लोगों को शायद यह अजीब लगे पर हमारा मानना है कि जनसुविधा केंद्र बनाने का अभियान छेड़ना चाहिए।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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