Saturday, May 21, 2011

आम और खास इंसान-हिन्दी व्यंग्य शायरी (aam aur khas insan-hindi vyangya shayari)

कभी आंधी उड़ा जायेगी,
कभी पानी बहा ले जायेगा,
कभी आग जला डालेगी,
आम इंसान सभी का आसान शिकार है
बच जायेगा
तो भी क्या
पता नहीं कब
आम इंसानों की बेईमानी की रीति उसकी
आखिरी उम्मीद भी लूट ले जायेगी।
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वह महल में रहें या जेल में
उनके चर्चे ज़माने में होते रहेंगे,
खास इंसानों का
ईमानदारी से बेईमानी तक का सफर
रंगीनियों से सजा रहता है
उनकी अदाओं को आम इंसान
मुफ्त में ढोते रहेंगे।
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लेखक संपादक-दीपक "भारतदीप", ग्वालियर 
writer and editor-Deepak "Bharatdeep" Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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Saturday, May 14, 2011

फरिश्ते और दरिंदे के भेष में आदमी-हिन्दी कवितायें (farishey aur darinde ke bhesh mein aadmi-hindi poem's)

अपने सामने ही
खुद के काफिले लुटते देखते रहे,
दरिंदों के आगे घुटने टेकते रहे,
इस उम्मीद में कि
सहारा मिल जायेगा
कहीं कोई फरिश्ता भी जिंदा होगा।
मगर हैरान है यह देखकर कि
टूटते रहे हमारे अरमान कांच की तरह
किसी को तरस नहीं आया
फिर भी यकीन नहीं होता
कि यहां हर आदमी दरिंदा होगा।
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हमेशा चारों तरफ
हमारी तन्हाई के घेरे रहे,
अपने ही नजरें फेरे रहे,
लाचारी किसी को लाई हमारे करीब
फिर हो गये लोग दूर
अकेलेपन दूर नहीं हुआ
मतलब के यार भले घेरे रहे।
लेखक संपादक-दीपक "भारतदीप", ग्वालियर 
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Monday, May 02, 2011

हिन्दी हास्य कविता-भ्रष्टाचार हटाने का कोई जंतर मंतर नहीं है (bhrashtachar hatane ka koyee jantar mantar nahin hai-hindi hasya kavita)

पोते ने का दादाजी से
‘कल हम सब बच्चे अपनी शिक्षिका के साथ
भ्रष्टाचार विरोधी रैली में जायेंगे,
खूब जोर से नारे लगायें,
अपनी कोशिश से इस देश में
 ईमानदारी  का युग फिर लायेंगे।’

सुनकर दादाजी  ने कहा
‘‘बेटा,
तुम जाओ हमें आपत्ति नहीं
पर शिक्षिका ने तुम्हें
भ्रष्टाचार का मतलब समझाया भी है  कि नहीं
लगता  नहीं वह भी जानती होगी,
बस नारे लगाना ही क्रांति मानती होगी,
सच बात तो यह है कि
इस संसार में भ्रष्टाचर मिटा सके,
ऐसा कोई जंतर मंतर नहीं है,
संसार के सारे इंसानों को
अपने कर्म में खोट भी लगता है शिष्टाचार
दूसरे का हर कर्म माने भ्रष्टाचार
सोच कां अंतर वहीं हैं,
हर कोई
पहले दूसरे से सुधरने की आशा करे,
फिर अपने भी उसी राह पर चलने का दिल में भाव भरे,,
यही बेईमानी सभी में आती है,
दूसरा शख्स झौंपड़ी में ही मरे,
अपनी इमारत चमचमाती होने  की
चाहत हर कोई धरे,
यही सोच भ्रष्टाचार की तरफ ले जाती है,
बड़े होकर
अगर तुम चल सको सत्य की राह
समझ लो पूरी हो जायेगी ईमानदारी लाने की चाह,
ऐसा ही हर कोई करे
तो भ्रष्टाचार मिट जायेगा,
वरना पहले से ही बढ़ा रहा है मुंह
सुरसा की तरह
अब और भी बढ़ायेगा,
हम भले उसे मिटाने के नारे लगाते
जीवन गुजारते जायेंगे।’
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