Sunday, January 29, 2012

पत्थर और शब्द-हिन्दी कविता (patthar aur shabd-hindi kavita or poem-stone and ward)

पत्थरों के खेल होते हैं
मगर वह जीते नहीं जाते,
कुछ घायल होते
कुछ बेमौत मर जाते।
कहें दीपक बापू
आओ
चंद शब्द मन में दुहराएँ,
कलम से होते जो कागज पर उतार आयें,
इंसान खुशनसीब है
भाषा मिली है बोलने के वास्ते,
क्यों चुने फिर पत्थर के रास्ते,
जज़्बातों में कुब्बत हो तो
दहशत के माहौल में भी
हँसते नगमे दिल पर परचम फहराते।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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Saturday, January 21, 2012

कभी नायक कभी खलनायक क्रिकेट टीम इंडिया-हिन्दी व्यंग्य (when hero when wilen cricket team india-hindi vyangya or satire

      टीम इंडिया आस्ट्रेलिया गयी तो उसे नायकत्व का दर्जा दिया गया और वह हार रही है तो उसे खलनायक की तरह प्रचारित किया जा रहा है। टीम जीतती तो खुशखबरी बनती और तब भी टीवी चैनलों पर विज्ञापन का दौर चलता। वह जीतने के बाद किसी होटल में जश्न मनाने पहुंचती तो उसका समाचार इस तरह आता कि‘‘ आज इंडिया टीम जीत का जश्न मनाने होटल पहुंची। वहां खिलाड़ियों ने शर्बत किया और पाव भाजी, डोसा औद दही बड़ा खाया।’’
       कहीं नौकायन के लिये जाती तो यह खबर आती कि ‘अमुक जलाशय धन्य हो गया कि विजेताओं ने वहा पदार्पण किया।’’
      वहां के नाविकों और पाव भाजी बेचने वालों के साक्षात्कार आते कि किस तरह विजेताओं को देखने का सौभाग्य पूर्वजन्म के पुण्यों के कारण उनको प्राप्त हुआ। तमाम तरह के दृष्टिकोणों से सृजित दृश्य हर टीवी चैनल पर आते। समाचार पत्रों में तो खैर एकाध फोटो वैसे ही छपता है पर उस समय पूरे पेज ऐसे फोटो से सजे होते। इससे समाचार सृजकों का श्रम और प्रसारकों का धन कम खर्च होता पर आय जमकर होती। अब टीम हार रही है।
        ऐसे में टीवी चैनल वाले क्या करें? आधे घंटे क्रिकेट पर कैसे व्यय कर अपना काम चलायें? श्रृंगार रस नहीं मिल रहा तो करुण रस की सुविधा तो ली जा सकती है। टीम हार रही है इससे लोग न नाराज हैं न खुश। पता नहीं कितने खेलों में कितनी जगह अपने देश की टीमें हारती हैं। समस्या क्रिकेट को लेकर आती है। कहा जाता है कि भारत में क्रिकेट एक धर्म है पर हमें अब ऐसा नहीं लगता। अलबत्ता प्रचार माध्यमों के लिये कमाई का एक बहुत जरिया है। इसलिये टीम के हारने पर वह करुणापूर्वक आर्तनाद कर रहे हैं। जिस क्रिकेट खिलाड़ी को भारत रत्न देने की मांग हो रही थी अब उसे टीम से निकालने तक का संदेश प्रसारित हो रहा है। दीवार की तरह खड़े एक खिलाड़ी को ढहाने के लिये कहा जा रहा है। इस आर्तनाद को और गहरा बनाने के लिये टीम इंडिया के खिलाड़ियों के घूमने फिरने और आराम करने पर प्रतिकूल टिप्पणियां करते हुए समाचार दे रहे हैं। निराशा को भुना रहे हैं। तय बात है कि इसमें भी विज्ञापन का समय पास होता है। भले ही उसमें प्रसन्नता के दौरान होने जैसा लाभ नहीं मिलता।
        एक जगह टीम ने अभ्यास नहीं किया। लगातार तीन टेस्ट मैच हारने वाली टीम इंडिया अपने होटल में आराम करती रही जबकि चौथा टेस्ट मैच शुरु होने में तीन रह गये थे। जीत की तिकड़ी जमा चुकी आस्ट्रेलिया की टीम ने जमकर अभ्यास किया। वह टीम इंडिया के सफाये की तैयारी में होगी और अपने ही देश में शेरों को दूसरे के सफाये के लिये उकसाने वाले प्रचार माध्यम उस पर आर्तनाद का वातावरण बना रहे हैं। एक पुराने क्रिकेट खिलाड़ी और अब विशेषज्ञ की भूमिका निभाने वाले का मानना है कि यह गलत रवैया है। दूसरे ने कहा कि इस तरह की बहानेबाजी केवल दिखावा है कि टीम को सही खिलाड़ी गेंदबाजी के लिये नहीं मिला, टीम के पास अपने तेज गेंदबाज हैं उनसे अभ्यास के लिये काम लिया जाता तो उनमें भी निखार आता। वह दोनों पुराने खिलाड़ी हैं और उन्होंने इतना पैसा क्रिकेट में नहीं कमाया होगा जितना अब वाले कमा रहे हैं। इन दोनों महानुभावों ने अगर इतना पैसा कमाया होता तो इस समय विशेषज्ञ के लिये टीवी चैनलों पर दौड़े न चले आते।
           आस्ट्रेलिया वाले इसलिये मेहनत कर रहे हैं क्योंकि उनको पैसा कमाना है। वैसे भी टीम इंडिया के मुकाबले उनको पैसा कमाने का मौका इतना नहीं मिलता। टीम इंडिया के खिलाड़ियों ने इतना पैसा कमा लिया है कि बड़े बड़े सेठों के लिये उतनी रकम पूरी जिंदगी में कमाना एक सपना ही हो सकती है। यह टीवी चैनलों में नौकरी कर रहे लोग तो अपनी जिंदगी में उतना पैसा भी नहीं कमा सकते जितना एक दो साल में यह खिलाड़ी कमा लेते है। फिर विदेश में जाकर कैसा काम? अपने देश में जो अधिक कमाता है वही अपने खर्च पर विदेश में घूमने जाता है फिर इन खिलाड़ियों ने तो कई अमीरों से ज्यादा कमा लिया है वह विदेश में जाकर मजे न करें तो क्या खाक छाने? अपने देश में तो जीतकर देते हैं। विदेश में अब हारें तो बाद में फिर देश में जितवा देंगे। मगर चलिये आर्तनाद भी बिकने की चीज है। प्रचार माध्यमों को क्रिकेट में आर्तनाद भी बेचना है।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
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Tuesday, January 10, 2012

यह बात समझ में नहीं आती-हिन्दी शायरी (yah baat samajh mein nahin aati-hindi shayari)

मिलावटी दूध
कैसे दुनियां का सबसे ताकतवर देश बनायेगा
यह बात समझ में नहीं आती,
सवा अरब की आबादी में
इंसानों के वेश पहने कितने पशु हैं
यह बात समझ में नहीं आती।
कहें दीपक बापू
तरक्की का रथ चलता जा रहा है
कितनी मासूम जानें
नीचे दबी हैं
आचरण की दर कितनी गिरी है
यह बात समझ में नहीं आती।
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Thursday, January 05, 2012

रूह और दिल-हिन्दी हाइकू (rooh aur dil-hindi hique)

सुंदरता की
पहचान किसे है
सभी भ्रमित,

दरियादिली
किसे कैसे दिखाएँ
सभी याचक,

वफा का गुण
कौन पहचानेगा
सभी गद्दार,

खाक जहाँ में
फूलों की कद्र कहाँ
सांस मुर्दा है,

बेहतर है
अपनी नज़रों से
देखते रहें,

खुद की कब्र
खोदते हुए लोग
तंगदिली में,

भरोसा तोड़ा
जिन्होने खुद से
ढूंढते वफा,

उन चीजों में
जो दिल को छूती हैं
रूह को  नहीं,

उनके दाम
सिक्कों में नपे हैं
दिल से नहीं।
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