यह पुराने और फ्लाप हिंदी ब्लाग लेखक का पाठ है। यह स्पष्ट करना इसलिये जरूरी है क्योंकि यह पाठ अपने शीर्षक के कारण वह नये ब्लाग लेखक भी पढ़ सकते हैं जिन्होंने इसका नाम तक नहीं सुना हो-हालांकि वह ऐसा करेंगे इसकी आशा नहीं है क्योंकि हिट ब्लाग लेखकों को पढ़ने की आदत जो हो गयी है। ब्लागवाणी बंद हो गया है, इसका दुःख है क्योंकि उसे इस लेखक के दो ऐसे मित्र चला रहे थे जो उसे पसंद करते थे हालांकि ब्लागवाणी पर भले ही इसके पाठ को अधिक समर्थन न मिलता हो।
ब्लागवाणी दो यशस्वी ब्लाग लेखकों का सृजन है (अभी शुरु होने की संभावना है इसलिये था नहीं कर रहे)। इनमें एक तो धुरविरोधीजी नाम से ब्लाग चलाते रहे बाद में उसे बंद कर दिया। उनकी विदाई में दुःख भरे गीत भी गाये गये। हमें भी अफसोस हुआ पर हैरानी तब हुई जब एक ब्लाग मित्र ने प्रथम मुलाकात में ही बताया कि धुरविरोधीजी तो ब्लागवाणी के संचालक हैं। तब हमारा दुःख कम हुआ।
अब इस ब्लागवाणी के अभ्युदय की चर्चा कर लें। ब्लागवाणी का निर्माण तो पहले ही हो गया था पर नारद की वजह से उस पर ब्लाग लेखक कम ही जाते थे जैसे अभी चिट्ठाजगत पर कम जाते हैं। उस समय नारद पर भी पसंद को लेकर ऐसी धमाचैकड़ी मची हुई थी। उस समय धुरविरोधी की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी जैसे हमारे ब्लाग की ब्लागवाणी पर होती है-वहां हमारे पाठ पर दो तीन संख्या ही रहती है हालांकि इससे धुरविरोधी जी के ब्लाग की कुछ अच्छी थी। वह इससे बहुत नाराज थे। इस पर उन्होंने विद्रोह कर दिया। जिसकी परिणति ब्लागवाणी के रूप में हुई। फिर भी उस पर ब्लाग लेखक कम ही जाते थे। एक बार नारद की स्थिति तीन दिन के लिये डांवाडोल हुई तो हमारी हालत भी ऐसे ही बनी जैसी आज मौलिक और स्वतंत्र ब्लाग लेखकों की है। तब ब्लागवाणी पर इस लेखक की नजर पड़ी और एक पाठ लिखा कि नारद में प्रति मोह तो ठीक है पर अन्य फोरमों पर भी जायें। इस पाठ का असर हुआ और ब्लागवाणी पर लोग पहुंच गये। हम भी नारद पर फ्लाप थे पर ब्लागवाणी पर हिट मिलने लगे पर फिर वही ढाक के तीन पात। हम यही सोचते रहे कि केवल इन्हीं फोरमों से पाठक मिलते हैं पर बाद में अपने लिये काउंटर लगाये तो पता लगा कि इन फोरमों से अधिक तो अन्य स्थानों से भी पाठक आते हैं। दरअसल यह समस्या ब्लाग स्पाट के ब्लाग पर ही नजर आती है जबकि वर्डप्रेस के डेशबोर्ड पर पाठक और पढ़े गये पाठों की संख्या का समूचा विवरण दृष्टिगोचर हो जाता है। आप अगर ध्यान करें तो किसी भी वर्डप्रेस वाले ब्लाग लेखक ने ब्लागवाणी के बंद होने पर ऐसा आर्तनाद नहीं किया जितना केवल ब्लाग स्पाट के ब्लाग लेखकों ने किया है।
मौलिक और स्वतंत्र लेखकों को यह जानकर हैरानी होगी कि हमने वर्डप्रेस के सारे ब्लाग अपने दम पर सफल बनाने के विश्वास में ब्लाग वाणी से हटवा लिया थे। आज भी वह यथावत अपनी पाठक संख्या बनाये हुए हैं। हां, एक बात है कि हम लिखते तो ब्लाग स्पाट के ब्लाग पर ही क्योंकि वह ब्लागवाणी पर दिखते हैं और तत्काल प्रतिकिया मिलती है। बाद में उसको वर्डप्रेस के ब्लाग पर रखते हैं और वह अधिक हिट दिलाते हैं।
स्वतंत्र और मौलिक ब्लाग लेखक तकनीक रूप से अधिक सक्षम नहीं होते पर उन ब्लाग लेखकों के पाठ भी नहीं पढ़ते जो इस संबंध में जानकारी देते हैं। उनको हिट देखकर टिप्पणियां दे तो आते हैं पर उनसे सीखते नहीं है। जो स्वतंत्र एवं मौलिक ब्लाग लेखक इन तकनीक से सक्षम ब्लाग लेखकों के पाठ पढ़ेगा वह सीखता जायेगा। इन्हीं ब्लाग लेखकों के ब्लाग से ही इस लेखक ने पाठ पठनपाठक संख्या बताने वाले काउंटर लिये हैं जिनसे अपने ब्लाग का स्तर पता लग जाता है।
जो छोटे शहरों के ब्लाग लेखक हैं उनको हिंदी ब्लाग जगत में चल रहे झगड़ों का सही पता नहीं लगता सिवाय इसके कि दो ग्रुप हैं जो हमेशा ही आपस में द्वंद्वरत रहते हैं। मुश्किल यह है कि दोनों तरफ ही हमारे मित्र हैं वह इस कारण क्योंकि अंतर्जाल पर शुरुआती दौर में उनसे संपर्क हो गया और उनसे हम सीखे। जब यह लोग आपस में टकराते हैं तो जो जानकारी हमारे सामने आती है वह हैरान कर देती है। छद्म नाम से ब्लाग लिखते हैं पर जब एक दूसरे की पोल खोलते हैं तो यह देखकर सन्न रह जाते हैं कि क्या वाकई अमुक ब्लागर छद्म नाम से भी लिखता है। हम जब नाम पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है कि पूरा का पूरा मित्र समूह ही ऐसा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंदी ब्लाग की सेवाओं को लेकर हम उन पर कोई आक्षेप नहीं करते भले ही उनको थोड़ा बहुत पैसा मिलता हो। बल्कि उनको पैसा मिलने पर हमें खुशी होती है। कभी कभी तो लगता है कि फिक्सिंग वार चल रहा है। इसके बावजूद एक बात सत्य है कि नारद समूह और ब्लागवाणी की आपस में पटरी नहीं बैठ सकती है। अब यह व्यवसायिक वजह से है या विचारों की वजह से इसे जानन को प्रयास करनां अपना समय बरबाद करना है। इसलिये जो रचनाकर्म और अभिव्यक्ति की वजह से ब्लाग लिख रहे हैं वह किसी एग्रीगेटर के बंद होने से इस तरह कभी निराश न हों। अपने ब्लाग स्पाट के ब्लाग पर कोई काउंटर लगा लें यही श्रेयस्कर होगा। नारद समूह के लोग काफी तेज हैं और वह छिपकर नहीं बल्कि सामने आकर ब्लागवाणी के लोगों का सामना करते हैं-यह अलग बात है कि यही लोग पाठकों के लोभ में आकर वहां अपने ब्लाग का पंजीयन कराने से बाज नहीं आते। अगर ब्लागवाणी लिंक नहीं देता तो अपने ब्लाग पर पाठ ही डाल देते हैं फिर उसका लिंक उस ब्लाग पर दिखाते हैं जो ब्लागवाणी पर है। बहरहाल यह ऐसा द्वंद्व ऐसा है जिसमें हम छोटे शहरों के मौलिक तथा स्वतंत्र ब्लाग कोई भूमिका नहीं निभा सकते। जहां तक ब्लागवाणी के संचालकों का सवाल है तो धुरविरोधी जी ऐसे चुप बैठने वालों में नहीं है वह कुछ नया जरूर करेंगे ताकि उनका प्रभाव हिंदी ब्लाग जगत पर बना रहे। यह पाठ हमने इसलिये लिखा क्योंकि कुछ नये तथा पुराने स्वतंत्र मौलिक ब्लागरों को इस पर परेशान होते देखा तो सोचा कि चलो उनसे अपनी बात कही जाये। हमने धुरविरोधी जी नाम इसलिये लिखा क्योंकि उनसे इसी रूप में परिचय है और हम उनके वैचारिक रूप को इसी रूप में पसंद करते हैं। वैसे उनके विरोधी भी उनके उसी रूप को नहीं भूलते और यह बताने से बाज नहीं आ रहे कि हमने तो नारद पर उनके आक्रमण को खूब झेला था वह क्यों अपना एग्रीगेटर बंद कर गये? हमारी धुरविरोधी जी को उनके अगले कदम के लिये शुभकामनायें। उनके विरोधियों को भी शुभकामनायें कि अभी वह कुछ दिन चैन से बैठ लें फिर आयेगा धुरविरोधीजी का कोई नया स्वरूप उनको व्यस्त रखने के लिये। हमारे तो सभी मित्र हो और दशहरे की दोबारा शुभकामनायें। सुबह का पाठ तो ब्लागवाणी के बंद होने के कारण फ्लाप हो गया न!
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3 years ago
2 comments:
दशहरा विजयत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामना
विचारोत्तेजक और आंखे खोलने वाला लेख...बधाई
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