कहीं नकदी कहीं उधार
खरीदने वाले भी कम नहीं हैं।
नारे सुनकर करते अपना काम
चुकाते जाते अपनी जेब से दाम
कामयाबी मिल जाये तो
सौदागरों की तारीफ में गीत गाते
नाकाम होने वाले भी कम नहीं हैं।
अपने सपने टूटने के साथ ही
लोग भी टूट जाते
गैर क्या अपनों को ही दूर पाते
आंसु बहा नहीं पाती उनकी लाचार आंखें
पत्थर जैसे चेहरे पर छायी खामोशी
देखकर लगता
जैसे उनको कोई गम नहीं है।
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2.दीपक भारतदीप का चिंतन
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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