चंद खोये सिक्के ढूंढने के लिए
पूरा घर का सामान बिखेर डाला
मिले पलंग के नीचे गिरे हुए
पहले तो खुशी मिली, फिर हुई काफूर।
बिखरी हुई शयों को समेटने के
ख्याल ने कर दिया बदन पहले ही चूर।
खोये पाये के हिसाब में
पूरी जिंदगी हो जाती है बेनूर।
सिक्के इतने जमा कर लिये संभाले नहीं जाते
गिनती में भूल जायें
तो देखते हैं उनको घूर।
सोचते कौन कम हुआ चश्मेबद्दूर।
खोये हुए सिक्के मिल गये
पर चले जायेंगे हाथ से
बनेंगे किसी दूसरे हाथ का नूर।
जिंदगी में गमों का सिलसिला भी आता है
खुशियां भी साथ चलती थोड़ी दूर।
अपना कितनों ने माना होगा
पर किसका हुआ कभी कोहिनूर।
.........................
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
-------------------------
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
-
रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
---
हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago
No comments:
Post a Comment