अमेरिकन लोगों का विश्वास है कि अगला बिल गेट्स भारत या चीन में पैदा होगा। यह एक सर्वे करने वाली एक ऐजेंसी ने बताया है। जहां तक चीन का सवाल है उसकी वर्तमान व्यवस्था में यह संभव नहीं लगता कि कोई एकल प्रयासों से ऐसा कर लेगा। फिर यह भी पता नहीं कि वहां पूंजीवाद का इतना खुला स्वरूप है कि नहीं। अलबत्ता भारत में इसकी संभावनाओं में कुछ संदेह लगता है क्योंकि जो प्रबंध कौशल बिल गैट्स का रहा है वह भारतीयों में बाहर तो दिखाई देता है पर अपने देश में वह लापता हो जाता है। बिल गैट्स इसलिये बिल गेट्स बन पाये क्योंकि हजारों तकनीशियनों और कर्मचारियों का समर्थन उनको मिला जिसका कारण यह है कि अमेरिका में वेतन का भुगतान ठीक ठाक से होता है।
भारत में कोई आदमी पूंजीपति बनने की तरफ पहला कदम बढ़ाता है तो अपने अंतर्गत काम करने वालों का शोषण करना उसका पहला लक्ष्य होता है। दूसरे को प्रोत्साहित करने की बजाय उसे दुत्कार कर काम लेना ही यहां के सेठों की मानसिकता रही है और यही कुशल प्रबंध की पहचान मानी जाती है। यह अलग बात है कि इसी कारण भारतीयों की छवि बाहर बहुत खराब है।
भारत के इंजीनियर भले ही साफ्टवेयर में महारत हासिल कर चुके हैं पर बिल गेट्स के करीब कोई नहीं दिखता। अलबत्ता एक आदमी ने कंप्यूटर जगत में काम कर अपनी कंपनी को उच्च स्तर पर पहुंचाया पर उसने ऐसे घोटाले किये कि अब वह जेल में है। बहुत कम लोगों को याद होगा कि लोग उसकी तुलना बिल गेट्स से करते थे जो शून्य से शिखर पर पहुंचा। कुछ लोग तो उसे भारत का बिल गेट्स तक कहते थे। मुश्किल यह है कि भारत में बिना घोटाले के बिल गेट्स पैदा होना चाहिये जिसकी संभावना नगण्य हील लगती है।
अलबत्ता भारत में बिल गेट्स के पैदा होने या उन जैसी छवि बनाने की संभावनाऐं उसी व्यक्ति के लिये हो सकती हैं जो कंप्यूटर को लालटेन से चलाने में सक्षम बनायेगा।
पूरे देश में बिजली की कमी जिस तरह होती जा रही है उससे तो यह लगता है कि इंटरनेट और कंप्यूटर का प्रयोग भी कठिन होता जायेगा। ऐसे में कोई ऐसा व्यक्ति अविष्यकार करे जो लालटेन से ही कंप्यूटर से ऊर्जा प्रदाय करने का कोई साधन बनाये तो वह लोकप्रिय हो पायेगा। लालटेन से इसलिये कह रहे हैं कि उससे दो काम हो जायेंगे। लालटेन सामने रखने से पास ही रखी किताब या कागज से सामग्री टंकित तो की जा सकेगी और कंप्यूटर भी चलता रहेगा। क्या सुंदर अविष्कार होगा? फिर अपने देश में पैट्रोल की कमी नहीं है। खूब आयात होता है। उसमें कंपनियों को बढ़िया कमीशन मिलता है तो यह संभव नहीं है कि उसका कभी आयात बंद हो।
वैसे तो बैटरी और जनरेटर से भी वैकल्पिक लाईट से घरों में व्यवस्था कर इंटरनेट चलाया जा सकता है मगर सभी के लिये यह संभव नहीं है। छोटी बैटरी से कंप्यूटर चलता नहीं, जबकि बड़ी बैटरी जनरेटर की व्यवथा करना बहुत महंगा है फिर उसमें खर्चा अधिक है। अगर अपने कंप्यूटर और इंटरनेट का शौकिया उपयेाग करना है तो आदमी सस्ती चीज ही चाहेगा। लालटेन में भी कम ऊर्जा से कंप्यूटर चलाने की व्यवस्था होना चाहिये।
देश की आबादी बढ़ रही है और ऊर्जा के सारे परंपरागत स्त्रोत साथ छोड़ रहे हैं। कंप्यूटर तो बिना बिजली के चल ही नहीं सकता। जो बिजली की अपनी व्यवस्था कर सकते हैं वह कंप्यूटर चलाते होंगे पर यह आम आदमी के बूते का नहीं है।
इसलिये जो शख्स बहुआयामी लालटेन से कंप्यूटर चलाने का अविष्कार करेगा उसके लिये देश में सम्मान पाने की बहुत जगह है। कंप्यूटर में नये प्रयोगों की बहुत गुंजायश है पर सबसे अधिक आवश्यकता इस बात की है कि वह ऊर्जा के नये और सस्ते प्रयोग से वह चले। अब यह लालटेन मिट्टी के तेल और गैस से जले या डीजल से या पैट्रोल ये तो उसे ही तय करना है जिसे अविष्कार करना हो। अलबत्ता हमने यह बात लिख दी। अगर भारत में कोई बिल गेट्स जैसा अवतरित होने को तैयार हो तो पहले यह भी सोच ले। वैसे जब कारें गैस सिलैंडर से चल सकती हैं तो भला ऐसा गैस का लालटेन क्यों नही बन सकता जिससे कंप्यूटर भी चले। चाहे किसी भी तरह का अविष्कार हो उसका स्वरूप लालटेन की तरह सस्ता होना होना चाहिये।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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