दीवार के पीछे ही
अपना चेहरा छिपाये रहो तुम,
तुम हो एक सजा सजाया ख्वाब,
कितने भी सवाल करूं
नहीं देना उनका जवाब,
तुम्हारे दिल के स्वर ही
दिमाग की सोच में बजते रहे हैं,
कई शेर कहे हमने यह मानकर
जैसे कि तुमने कहे हैं,
अपने कड़वे सच के घूंट
हमने जहर की तरह पिये हैं,
अभी तक ख्वाबों के
अमृत के सहारे ही जियें हैं,
आंखों सामने आकर अपना सच न दिखाना
जब तक हम भूलें न तुमको
दीवार के पीछे ही खुद को छिपाना,
वरना पल भर में ख्वाबों की दुनियां हो जायेगी गुम।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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