ख्याल आया इंसानों से जुड़ने का,
अकेलेपन से भीड़ के रास्ते मुड़ने का
मगर बहुत जल्दी आ गयी
सामने जिन्दगी की सच्चाई।
मुफ्त में प्यार नहीं मिलता,
धोखे के बिना व्यापार नहीं हिलता,
चीख रहे हैं लोग
अपनी बेहाली छिपाने के लिये,
मुस्कराहट ला रहे चेहरे पर जबरन
दिल का खालीपन मिटाने के लिये,
किसी ने कहा अपना दर्द,
कोई रहा रिश्तों के लिये बेदर्द,
जब परिचित होकर भी बने रहे सभी अजनबी
तक लगा कि भीड़ से अच्छी थी
हमारी अपनी तन्हाई।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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