Thursday, September 04, 2008

नव संपादकीय

आजकल जब अखबारों के सम्पादकीय पढ़ने को मिलते हैं तो ऐसा लगता है कि वह केवल समाचारों का विस्तार हैं और उनके संपादक के अपने कोई विचार नहीं हैं। कुछ संपादक तो ऐसे लिखते हैं जैसे वह केवल उसी सामग्री पर रोशनी डाल रहे हैं जो समाचारों में रहना शेष रह गयी है। ऐसे में किसी ऐसे संपादक की आवश्यकता अनुभव हो रही है जो अपनी बात को मौलिकता और स्वतंत्रता के साथ कह सके। इसी मद्देनजर यह पत्रिका लिखी जा रही है। चूंकि यह स्वतंत्र और निष्पक्ष विचार सामग्री के साथ ओतप्रोत होगी तो यह बात भी तय है कि इसके संपादक को संरक्षण की आवश्यकता होगी और इसके लिये धन की आवश्यकता होगी।
अभी इस पत्रिका के पाठक नगण्य है पर जब इसमें रुचिकर, निष्पक्ष और प्रभावी संपादकीय लिखी जायेगी तो लोग इसे पढ़ना चाहेंगे पर यह तभी संभव है कि पत्रिका और उसके पास आर्थिक सुरक्षा होगी। अंततः संपादकीय लिखना एक व्यवसायिक कार्य है और इसलिये कोई अगर इसके लिये तैयार हो तो ही यह संभव है कि इस पर लिखा जाये।
इसके दो तरीके हैं जो पाठक इसे पढ़ना चाहते हैं वह इसके लिये भुगतान करने को तैयार हो जायें तो उनके ईमेल पर यह लिखकर ब्लाग भेजा जायेगा या फिर कोई प्रायोजक जो अपना विज्ञापन देकर इसे अनुग्रहीत करना चाहे तो फिर इसे हमेशा खोलकर रखा जायेगा। अगर इसे केवल पाठक पढ़ना चाहते हैं तो उनके लिये कुछ घंटे तक ही खोला जा सकेगा और बाकी तो उनको ईमेल पर ही पढ़ने को मिल जायेगा।

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