Saturday, December 06, 2008

जमाने को दिखाने के लिये जो रोते हैं-व्यंग्य कविता

वह उदास था
उसके चेहरे पर थी गम की लकीरें
पर उससे कहा गया कि
जब तक रोएगा नहीं तब
तक उसके दुःख को सच नहीं माना जायेगा
उसके दर्द को तभी माना जायेगा असली
जब वह अपने आंसू जमीन पर गिरायेगा

उसने कहा
‘दिखाने के लिये जो रोते हैं
उनके पास ही ऐसे हथकंडे होते हैं
दिल में हो या नहीं गम
पर दहाड़ कर रोते हैं
अगर कोई गम है दिल में
तो बहकर ऐसे नहीं बाहर आयेगा
कि इंसान उसे दिखायेगा
गम होना अलग चीज है
उस पर आंसू बहाना अलग
जिनके दिल में सच में दर्द है
वह दिखाता है चेहरा
पर जुबान पर क्भी नहीं आयेगा

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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

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