कोई दूसरा आकर क्यों करेगा।
अपने घाव पर मरहम नहीं लगाया तो
दूसरा कौन आकर दर्द दूर करेगा।
भलाई के नारे सुनकर मत बहकना
बिकती है बाजार में
मिलेगी तभी जब उसके दाम भरेगा।
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जब बाजार में ख्याल
सच बनकर बिक जाते हों
वहां खरीददार पर तरस तो आयेगा।
टूटते बिखरते जज्बात
अन्याय और आंतक की सहते लात
लोग झेल रहे हैं इस इंतजार में
उनका बचाने कोई आकाश से आयेगा।
हाथ पांव होते लाचार
बुद्धि होते हुए भी नहीं आता विचार
आकाश की तरफ ताक रहे खिलौने की तरह
इस उम्मीद में कि
उनको चलना सिखाने कोई फरिश्ता आयेगा।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
aapke bheetar ki aag aur us aag se milne waali urja se samaaj ka vikaas ho.........
meri haardik shubhkaamnaa hai.........
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