Tuesday, February 23, 2010

पेशा है अमीरों को गलियां देना-हिन्दी व्यंग्य शायरी (trede of welfare-hindi satire poem)

 नारे लगाकर हुई कमाई से
वाद चलाये जाते हैं,
आतंक वाले उदार दिखने की कोशिश करते
तो लोगों की तरक्की के लिये जूझने वाले
हिंसा को जरूरी बताये जाते हैं।
इस अर्थयुग में जमाने का मुफ्त में भला करने वाले
कहां से आयेंगे,
ख्याल हैं जिनके पुरानी किताबों के गुलाम
कब अपना सोच पायेंगे,
सुना है
बेबसों को इंसाफ दिलाने के नाम पर
बंदूक से गोलियां उगलने वाले भी
अपने बैंक खाते बढ़ाये जाते हैं।
पेशा है अमीरों को गलियां देना
शौक है पुरानी किताबों में सजी
नज़ीरें चलाने के लिये
नई नई गाड़ियां लेना
बहस करने पर
कोई कहे खेत की
तो वह खलिहान की सुनाये जाते हैं।
धोखा है उनका नज़रिया
वह सच से नज़र चुराये जाते हैं।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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