नारे लगाकर हुई कमाई से
वाद चलाये जाते हैं,
आतंक वाले उदार दिखने की कोशिश करते
तो लोगों की तरक्की के लिये जूझने वाले
हिंसा को जरूरी बताये जाते हैं।
इस अर्थयुग में जमाने का मुफ्त में भला करने वाले
कहां से आयेंगे,
ख्याल हैं जिनके पुरानी किताबों के गुलाम
कब अपना सोच पायेंगे,
सुना है
बेबसों को इंसाफ दिलाने के नाम पर
बंदूक से गोलियां उगलने वाले भी
अपने बैंक खाते बढ़ाये जाते हैं।
पेशा है अमीरों को गलियां देना
शौक है पुरानी किताबों में सजी
नज़ीरें चलाने के लिये
नई नई गाड़ियां लेना
बहस करने पर
कोई कहे खेत की
तो वह खलिहान की सुनाये जाते हैं।
धोखा है उनका नज़रिया
वह सच से नज़र चुराये जाते हैं।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwaliorवाद चलाये जाते हैं,
आतंक वाले उदार दिखने की कोशिश करते
तो लोगों की तरक्की के लिये जूझने वाले
हिंसा को जरूरी बताये जाते हैं।
इस अर्थयुग में जमाने का मुफ्त में भला करने वाले
कहां से आयेंगे,
ख्याल हैं जिनके पुरानी किताबों के गुलाम
कब अपना सोच पायेंगे,
सुना है
बेबसों को इंसाफ दिलाने के नाम पर
बंदूक से गोलियां उगलने वाले भी
अपने बैंक खाते बढ़ाये जाते हैं।
पेशा है अमीरों को गलियां देना
शौक है पुरानी किताबों में सजी
नज़ीरें चलाने के लिये
नई नई गाड़ियां लेना
बहस करने पर
कोई कहे खेत की
तो वह खलिहान की सुनाये जाते हैं।
धोखा है उनका नज़रिया
वह सच से नज़र चुराये जाते हैं।
http://zeedipak.blogspot.com
-------------------------
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
No comments:
Post a Comment