हाथ जलने के डर से
दियासलाई नहीं जलायेंगे
तो फिर रौशनी भी नहीं पायेंगे।
चूहों की तरह अंधेरे में छिपने की
आदत हो गयी तो
हर जगह बिल्लियों के आंतक तले
अपना जीवन बितायेंगे।
कभी न कभी तो लड़ना होगा,
चूहे का वेश छोड़ इंसान बनना होगा
आग जलने दो अनाचार के खिलाफ
वह ताकतवार होंगे तो हम मर जायेंगे,
अगर कमजोर हुए तो छोड़ देंगे सांस
फैसला होना चाहिये
जीते तो अमर हो जायेंगे।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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3 years ago
3 comments:
waah1 bahut sundar rachna!
bahut umda kavita...
कभी न कभी तो लड़ना होगा,
जी हाँ लड़ना तो होगा ही.
सुन्दर रचना
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