अंधेरा उन्होंने अपने यहां कर लिया।
हादसे की खबर के इंतजार में
गम के इजहार के लिए
पकड़े खड़े हैं हाथ में मोमबती और दिया।
मजमा देखने जाती भीड़ से
अपने घर के अंदर के नजारे
छिपाने की एक कोशिश भी थी यह
हमदर्दों में अपना नाम भी लिखा लिया।
.............................
दूसरे के घरों होती जंग
देखकर कब तक दिल बहलाओगे।
अपने यहां फैले खतरे को
अपने से कितना छिपाओगे।
अभी तो उछाल रहे हो
अपने लफ्ज पत्थर की तरह
पर जब फैलेगी बगावत तुम्हारे यहां
तब दूसरे के बदले से
अपने को कैसे बचाओगे।
.............................
लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
No comments:
Post a Comment