रुक जायेगी कलम हमारी वरना।
भाषा के तूणीर में तुम शब्द तीर भरकर
कागजी द्वंद्व करते हुए नायक बनना।
बाहर दर्शक बनकर देखेंगे तुम्हारा द्वंद्व
तुम्हारी अदाओं पर करेंगे कभी रचना।।
संकोच की कोई बात नहीं है लड़ने में
हर हालत में गुस्सा अपने अंदर भरना।
दुनियां के सारी सोच बनी है जंग पर
हम तो हैं दर्शक, तुम महायोद्धा बनना।
कुछ लोग रोऐंगे तुम्हारे हाल पर
कुछ हंसेंगे, तुम कभी परवाह न करना।
तलवार युग गया, तुम कलम वैसे चलाओ
लिखो लड़ने की तरह, हमें तो है पढ़ना।।
सच यह है तुमसे ही समझे अमन के फायदे
बीत जाती द्वंद्वों में अपनी जिंदगी भी वरना।
---------------------
कुछ नहीं देखा
कुछ नहीं सुना
कुछ नहीं बोला
देखो कितना अमन है।
फंसे हैं जो द्वंद्वों में,
फूलों को लेकर
किसी को तोहफे में देने की बजाय
चुभोने के लिये कांटे ढूंढ रहे है
उनके लिये अस्त्रागार
और हमारे लिये विश्रामगृह यह चमन है।
........................
लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
1 comment:
satik byanbaaji ..........bahut khub
Post a Comment