Friday, June 05, 2009

समाज और खानदान-दो व्यंग्य क्षणिकायें

जिन कहानियों में हर पल
क्लेशी पात्र सजाये जाते
उसी पर बने नाटक
सामाजिक श्रेणी के कहलाते
सच है समाज के नाम पर
लोग भी खुशी कहां पाते।
....................
जिनकी बेइज्जती
सरेआम नहीं की जाती
बड़े खानदान की छबि उनकी बन जाती।
फिर भी बड़े खानदान पर
यकीन नहीं करना
उनकी बेईमानी भी
ईमानदारी की श्रेणी में आती।

............................
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3 comments:

karuna said...

दीपकजी आपकी व्यंगात्मक रचना सच के बहुत करीब हैं बधाई

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया!

श्यामल सुमन said...

कम शब्दों में गहरी चोट। वाह।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

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