Sunday, May 30, 2010

अमन और तरक्की गेंहूं की तरह पिसते हैं-हिन्दी शायरी (aman aur tarakki piste hain-hindi shayari)

खिली हुई हैं उनकी बाछें,
बिछ गयी हैं फिर जमीन पर आज कुछ लाशें,
क्योंकि कातिलों से उनके जज़्बातों के रिश्ते हैं।
अपने ख्यालों का ओर छोर पता नहीं,
हमख्याल जहां देखते, कोरस गाने लगते हैं वहीं,
अपनी अक्ल किराये पर चलाते हैं,
पर आजाद खुद को बताते हैं,
खूनखराबे और शोरशराबे के चलते चक्रों में
देख रहे ज़माने का भला
जिनमें अमन और तरक्की गेंहूं की तरह पिसते हैं।
जिस पर रोटी पकाने के लिये वह लिखते हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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Wednesday, May 26, 2010

आधुनिक युग का मूलमंत्र-हिन्दी शायरी (adhunik yug ka mulmantra-hindi shayari)

गरीबी हटाओ,
धर्म बचाओ
और चेतना लाओ
जैसे नारों से गुंजायमान है
पूरा का पूरा प्रचार तंत्र।
चिंतन से परे,
सुनहरी शब्दों से नारे भरे,
और वातानुकूलित कक्ष में
वक्ता कर रहे बहस नोट लेकर हरे,
खाली चर्चा,
निष्कर्ष के नाम पर काले शब्दों से सजा पर्चा,
प्रचार के लिये बजट ठिकाने के लिये
करना जरूरी है खर्चा,
भले ही आम आदमी हाथ मलता रहे,
मगर बाज़ार का काम चलता रहे,
सौदागर का खाता फलता रहे,
नयी सभ्यता का यही है अर्थतंत्र।
पैसे के लिये जीना,
पैसे लेकर पीना,
पैसा चाहिए बिना बहाऐ पसीना,
आधुनिक युग का यही है मूलमंत्र।
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Thursday, May 20, 2010

चूहे का वेश छोड़ना होगा-हिन्दी शायरी (choohe ka vesh-hindi shayri)

हाथ जलने के डर से
दियासलाई नहीं जलायेंगे
तो फिर रौशनी भी नहीं पायेंगे।
चूहों की तरह अंधेरे में छिपने की
आदत हो गयी तो
हर जगह बिल्लियों के आंतक तले
अपना जीवन बितायेंगे।
कभी न कभी तो लड़ना होगा,
चूहे का वेश छोड़ इंसान बनना होगा
आग जलने दो अनाचार के खिलाफ
वह ताकतवार होंगे तो हम मर जायेंगे,
अगर कमजोर हुए तो छोड़ देंगे सांस
फैसला होना चाहिये
जीते तो अमर हो जायेंगे।

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Thursday, May 13, 2010

तलवार और शब्द-हिन्दी शायरी (talwar aur shabad-hindi shayari)

बुद्धिमान लोग
पहले से ही तयशुदा जंग लड़ते हैं,
एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिये
कहीं तलवार हवा में हिलाते
कहीं कागज पर शब्द भरते हैं।
सच में जो उतरते मैदान में
उनको अब कोई नहीं पूछता,
क्योंकि अब पर्दे के आसपास ही
सिमट गयी हैं लोगों की आंखें
जिनके दृश्य केवल पैसे
नकली नायकों और खलनायकों के
द्वंद्व से ही सजते है
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शांत पड़ी महफिल में
भूचाल आ गया,
‘सबसे अच्छा कौन’ का प्रश्न जब किसी ने पूछा
तो मृत्यु जैसा मौन छा गया।
फिर शुरु हुआ उत्तर देने का दौर
हर कोई अपनी छाती ठोक कर
अपने कारनामें बयान कर रहा था
आखिरी तक कोई जवाब नहीं मिला
नापसंद कर रहे थे सभी एक दूसरे को
स्वयं को हर कोई भा गया।

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Monday, May 10, 2010

अच्छी थी अपनी तन्हाई-हिन्दी शायरी (apni tanhaii-hindi shayari)

ख्याल आया इंसानों से जुड़ने का,
अकेलेपन से भीड़ के रास्ते मुड़ने का
मगर बहुत जल्दी आ गयी
सामने जिन्दगी की सच्चाई।
मुफ्त में प्यार नहीं मिलता,
धोखे के बिना व्यापार नहीं हिलता,
चीख रहे हैं लोग
अपनी बेहाली छिपाने के लिये,
मुस्कराहट ला रहे चेहरे पर जबरन
दिल का खालीपन मिटाने के लिये,
किसी ने कहा अपना दर्द,
कोई रहा रिश्तों के लिये बेदर्द,
जब परिचित होकर भी बने रहे सभी अजनबी
तक लगा कि भीड़ से अच्छी थी
हमारी अपनी तन्हाई।
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Wednesday, May 05, 2010

प्रेम जीवन और गृहस्थ जीवन में अंतर होता है-हिन्दी आलेख (love life and home life-hindi editorial)

वह लड़की एक पत्रकार थी और अपने परिवार से दूर रहती थी। उसने अपनी जाति से इतर एक युवक से प्रेम किया किया था। वह प्रेम विवाह करने की इच्छुक थी पर उसके परिवार के लोग इसके लिये तैयार नहीं थे। अंततः वह लड़की अपने प्रेमी को छोड़कर अपने घर आयी और वहां उसकी संदिग्ध हालतों में मौत हो गयी-अभी यह तय होना बाकी है कि आत्महत्या थी कि हत्या। यहंा प्रेम भी है और समाज की रीतियां भी और साथ में मौत का विषय तो बहस तो होनी ही थी। फिर अब तो आधुनिक प्रचार माध्यमों में हर छोटे विषय को बड़ा बनाकर बहस चलती है ताकि व्यवसायिक संगठित प्रचार माध्यमों का समय पास हो सके-यानि विज्ञापनों से कमाई हो सके-तब तो इस विषय पर लंबे समय तक विचार चलना ही है।
समाज पर ताना कसते लोग! स्त्री की विवशता पर शिकायतें दर्ज करते विद्वान! नारीवादी और इश्कवादी बुद्धिजीवियों को लिये यह बेहतर अवसर है अपनी बात कहने के लिये। वह लड़की गर्भवती थी और इसे अनदेखा कर औरत की आजादी और विवशता पर परंपरागत ढंग से टिप्पणियां हो रही है।
पता नहीं भारत के विद्वानों का विदेशी अनुभव कैसा है पर हमने संगठित प्रचार माध्यमों-टीवी, चैनल, रेडियो तथा समाचार पत्र पत्रिकाऐं-में समाचार और विचारों का अध्ययन किया है और जहां तक हमारी जानकारी है पश्चिम में भी बिन ब्याही मां बनना कोई अच्छी बात नहीं समझी जाती। यह सही है कि पश्चिम में बिना विवाह साथ रहने की परंपरा भी जोर पकड़ी रही है पर अगर पिता जिम्मेदारी लायक न हो तो मां बच्चे को जन्म देने को तैयार नहीं होती। ऐसे समाचार भी आते रहे है कि अमेरिका और ब्रिटेन के सामाजिक विशेषज्ञ बिना मां बनने की घटनाओं से चिंतित हैं जबकि यह देश तो आधुनिक सभ्यता के देवता माने जाते हैं।
दरअसल ऐसी घटनायें नयी नहीं है पर जिस तरह इन घटनाओं को लेकर पूरे समाज की सोच पर सवाल किये जाते हैं पर कभी कभी हास्यप्रद लगता है। असफल प्रेम या सफल जीवन दांपत्य एकदम नितांत निजी विषय है और इससे कोई सामाजिक अर्थ नहीं निकलते। इतना बड़ा देश है पर कितनी लड़कियां बिना मां बनने के लिये तैयार होती हैं? यकीनन लड़कियों को एकदम बददिमाग मानना अपने मूर्खता का प्रमाण देना है क्योंकि इतनी समझ सभी में है कि शादी करना और गृहस्थी अच्छी तरह चलाने में अंतर है। बच्चे का जन्म होने पर उसके लालन पालन की समस्या रहती है और इसके लिये जिम्मेदार मां के साथ पिता का होना भी जरूरी है।
वह लड़की अब इस संसार में नहीं है। एक खूबसूरत प्रतिभाशाली लड़की का इस तरह जीवन त्यागना दुःख का विषय है पर यह इतने बड़े समाज में यह एक घटना है। अब आरोप उसके माता पिता तथा भाई पर लग रहे हैं।
अपने से दूर रहने वाली अपनी पुत्री को अंतर्जातीय विवाह से रोकने के लिये पिता ने एक पत्र लिखा था। अब पत्र की भाषा को एक धमकी माना जा रहा है। अफसोस होता है यह सब देखकर! संभव है कि माता पिता तथा भाई ने मारा हो पर वह यह पत्र इस बात की गवाही नहीं देता। पिता ने जो लिखा था वह कोई ज्ञानी ही लिख सकता है। आखिर उस पिता ने अपनी बाईस वर्षीय पुत्री को लिखा क्या था!
बेटी अभी तुमने पाठयक्रमों की किताबें पढ़ी हैं, जीवन का अनुभव तुम्हें नहीं है।
यह फिल्मों में होता है पर जीवन अलग तरह का है।
जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।
उच्च जातीय युवती को निम्न जातीय युवक से शादी करना अनिष्टकारी होता है।
तुम्हारे ग्रहों में राहु की दशा खराब चल रही है जो तुम्हारा विवेक नष्ट कर रहा है जिससे तुम्हारा अनिष्ट होगा-इससे पता लगता है कि उन्होंने ज्योतिष का ज्ञान होगा या फिर किसी ज्योतिषी से पूछा होगा।
बहुत बहसें सुनी पर उस लड़की के गर्भवती होने का प्रसंग बहुत अधिक महत्वपूर्ण है जिसे शायद अनदेखा किया जा रहा है। कह रहे हैं कि लड़की ने विद्रोह किया था इसलिये उसे जान देनी पड़ी, मगर यह तो अर्द्धविद्रोह था। एक पांव इधर एक उधर। पूर्ण विद्रोह और पलायन के बीच की स्थिति होने के कारण इसे अर्द्धविद्रोह कहना ही ठीक है।
नारीवादी और इश्कवादी बुद्धिजीवी आज तक यह नहीं समझा पाये कि अगर किसी जोड़े को परिवार और समाज से विद्रोह करना ही है तो वह फिर शादी जैसी पंरपरा की तरफ जाता ही क्यों है? आखिर यह समाज की ही तो प्रवृत्ति है। फिर अपने देश में बिना विवाह साथ रहने और बच्चे पैदा करने की छूट मिल गयी है। इधर गर्भनिरोध के हजारों प्रकार के उपाय मौजूद हैं तब उस विद्रोही लड़की ने उसे क्यों नहीं अपना सकती?
वह प्रेमी के मना करने के बावजूद अपने माता पिता से मिलने क्यों गयी? माता पिता समाज का ही हिस्सा हैं और उन्होंने अपने घर से बाहर निकलकर उसको पकड़ा नहीं  था। वह आखिर उनकी परवाह क्यों कर रही थी! वह क्यों इजाजत चाहती थी अपने परिवार वालों से! स्वयं को अच्छी बेटी साबित करने के लिये न! समाज को दोष देने वाले बतायें कि ऐसे कमजोर विद्रोही किस काम से जो आगे निकलकर फिर पीछे मुड़कर देखते हैं। विवाह की तिथि तय की गयी पर किया नहीं गया। विद्रोह से पीछे हटा कौन! कौन रोक रहा था? फिर समाज को चुनौती देने का यह प्रयास किस लिये!
कहना कठिन है कि सच क्या है, उस लड़की और उसके प्रेमियों के अपने अन्य युवक युवतियों के मित्रों के साथ फोटो देखने से पता लगता है कि महानगर के स्वच्छंद जीवन ने उसे अपने परिवार और समाज की शक्ति को भूलने को विवश कर दिया था। बस मस्ती करो जैसे फिल्मों में देखते हैं। ढाबों पर जाकर खाना खाओ और ठंडा पीयो और उन लम्हों को कैमरे में कैद करो।
मगर इन अवसर पर पर खर्च किये जाने वाले हजार या दो हजार रुपयों से इतने बृहद जीवन के कुछ पल ही खरीदे जा सकते हैं। जब पेट में भ्रुण हो तो औरत की मनस्थिति बदल जाती है। एक सामान्य औरत और गर्भवती स्त्री की मनस्थिति पर अधिक लिखने या बताने की जरूरत नहीं है। एक तरफ उसके सामने अपने गर्भ में पल रहे बच्चे के लिये रोमांच होता है तो दूसरी तरफ उसके पैदा होने तथा उसके बाद उसके पालन होने की चिंता भी होती है और यकीनन वह इसे अपने पति, पिता तथा प्रेमी तक पर भी जाहिर नहीं  करती।
यही भ्रुण उसकी चिंता का विषय रहा होगा। अगर वह जीवित होती तो महानगर में दिन ब दिन ऐसी समस्याओं का सामना करना होता जो प्रेम जीवन से एकदम अलग होती हैं। जैसे जैसे गर्भ दृढ़ होता है औरत चाहती है कि कोई अपना रक्त संबंधी उसके पास रहे और उस समय मां उसका सबसे बड़ा आसरा होती है। दूसरी बात ऐसी औरत की दिनचर्या बदल जाती है। ऐसे में नियमित काम करने में भी परेशानी होती है। सबसे बड़ी बात यह है कि उस समय धन का होना जरूरी लगता है। अब सवाल यह है कि क्या उसके प्रेमी की यह हैसियत थी कि वह प्रेम जीवन को गृहस्थ जीवन में बदलने के लिये व्यय कर सकता था। क्या वह वैसी सुविधाऐं उसे दिला सकता था जैसी उसके माता पिता देते थे। दूसरी बात यह कि क्या कमतर सुविधाओं में वह लड़की रहने की क्षमता रखती थी।
उसे प्रेमी की आर्थिक स्थिति पर शायद संदेह हो! इसलिये वह अपने माता पिता और भाई का समर्थन चाहती हो। तय तारीख पर विवाह न होना फिर उसका वहां माता पिता को मनाने जाना इस बात का संकेत देता है कि कहीं न कहीं वह उनसे भौतिक सहयोग की अपेक्षा कर रही होगी। उसका प्रेमी भले ही दावा करता है वह उसे बहुत अच्छी तरह जानता था पर वह प्रेम रस में डूबी एक सुंदर अविवाहित युवती से परिचित था न कि एक गर्भवती युवती की मनस्थिति जो अपने भ्रुण के साथ ही अनेक बातें भी पेट में रखती है-यह बात बुजुर्ग महिलाओं की चर्चा के आधार पर लिखी जा रही है।
जब धन संबंधी बात चली है तो अब पिता की बातें करें। हम यहां जाति की बात न भी करें तो कम से कम एक बात मान लेना चाहिये कि अमीर परिवार की लड़की गरीब परिवार में ब्याह नहीं करे तो ही ठीक है। अगर करे तो अपनी सुविधा और सुख मोह त्याग करने के लिये उसे तैयार होना चाहिए। बुजुर्ग कहते हैं कि लड़की हमेशा बड़े घर में देना चाहिये और बहुत हमेशा छोटे घर से लाना चाहिये। किसलिये! शादी कोई सन्यास के लिये नहीं की जाती है बल्कि इस भौतिक जीवन को संबल देने के लिये की जाती है जिसमें अर्थ की महत्ता को नकारना कठिन है। प्रेम जीवन कोमलता और गृहस्थ जीवन की कठोरता को सभी जानते हैं, यह अलग बात है कि कहंी अपने विचार व्यक्त करना हो तो उसे भुलाना ठीक लगता है। बहरहाल पिता अगर कोई समझाइश दे रहा था तो वह जीवन के अनुभव के आधार पर दे रहा था।
उस प्रतिभाशाली लड़की की मौत एक ऐसा हादसा है जिस पर दावे के साथ कुछ लिखना कठिन है। इसका कोई सामाजिक सरोकार भी नहीं दिखता। यह एक नितांत एकांकी घटना है। देश भर की लड़कियों की फिक्र करते हुए लोग केवल दिखावा कर रहे हैं। वह एक लड़की दुर्भाग्य का शिकार बनी पर इस समय करोड़ो लड़कियां हैं जो जिंदा है और सामान्य सामाजिक जीवन व्यतीत कर रही हैं। हो सकता है आगे भी ऐसी अनेक धटनायें हों पर तब भी यह देखना होगा कि कितनी उनमें शामिल नहीं है। बहरहाल यह शादी और प्रेम तो ऐसी घटनायें हैं जो सभी के जीवन में आती हैं पर सभी की स्थितियां अलग होती हैं। अलबत्ता भावावेश में इस तरह की घटना में युवा मौत से दिल दुःखता तो है। भगवान उस युवती की आत्मा को शांति प्रदान करे-यही कामना हम भी करते हैं। बाकी ऐसे मसले तो चलते रही रहेंगे। इतना जरूर है कि ऐसे हादसे उन लोगों को डरा देते हैं जिनके घर में अविवाहित पुत्रियाँ हैं।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
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