आंखों को चमत्कार की तरह दिखता है।
इसलिये हर कोई उसी पर लिखता है।
अथक परिश्रम से
पसीने में नहाई रचना
शांति के साथ पड़ी रहती हैं एक कोने में
कोई अंतर नहीं होता उसके होने, न होने में।
आवाज देकर वह नहीं जुटाती भीड़
इसलिये कोई उस पर नहीं लिखता है।
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किसी के मन में हिलौरें
नहीं उठाओगे।
तो कोई दाम नहीं पाओगे।
हर किसी में सामथर्य नहीं होता
कि जिंदगी की गहराई में उतरकर
शब्दों के मोती ढूंढ सके
तुम सतह पर ही डुबकी लगाकर
अपनी सक्रियता दिखाओ
चारों तरफ वाह वाह पाओगे।
सच्चे मोती लाकर क्या पाओगे।
उसके पारखी बहुत कम है
नकली के ग्राहक बहुत मिल जायेंगे
पर तुम्हारे दिल को सच से
तसल्ली मिल सकती है
पर इससे पहले की गयी
अपनी मेहनत पर पछताओगे।
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1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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