बरसों से फ्लाप दुकान का
बोझ ढो रहे थे यौनाचार्य।
कभी दुध वाला पैसे देने के लिए लड़ता
तो कभी किराने वाला पकड़ता
एक तो वैसे ही जमाने से
मूंह छिपाते
फिर आधुनिक चिकित्सा शिक्षा पद्धति से
शिक्षित समाज में
उनके पास यौन रोगी भी कम आते
अब चमक रहा है उनका चेहरा
जब से परिचय बदलकर
लिख दिया है समलैंगाचार्य।’
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समाज की समस्याओं पर
वह हमेशा सवाल उठाते हैं।
जवाब ढूंढने से क्यों न हो उनको परहेज
लोग उनके
सवाल पर ही वाह वाह किये जाते हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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