‘‘यार, सोचता हूं
सच की मशीन पर बैठकर
साक्षात्कार कराऊं।
वैसे भी कहा गया है कि
त्रिया चरित्र के बारे में कोई नहीं जानता
हर कोई अपने अनुमान को सही मानता
आजकल के घोर कलियुग में तो
कहना ज्यादा कठिन है
इसलिये सच पता करने का
यह पश्चिमी मार्ग अपनाऊं।’’
सुनकर दोस्त ने कहा
‘‘किस मूर्ख ने कहा है कि
सच के सामने की मशीन से
अपनी जिंदगी का प्रमाणपत्र पाओ
दोस्त! तुम जिस इश्क के चक्कर में हो
वह भी पश्चिमी मार्ग है
जिसमें आदमी और औरत चलते है
एक अकेले राही की तरह
चाहने वालों के नाम
स्टेशन की तरह बदल जाते हैं
फिर तुम कौन दूध के धुले हो
कहीं उसने कह दिया कि
तुम भी गर्म आसन (हाॅट सीट) पर
बैठकर अपना सच बताओ
तो फिर कहां जाओगे
झूठ बोलते पकड़े जाओगे
आओगे मेरे पास पूछने कि
‘रूठी प्रेयसी को कैसे मनाऊं।’
तब मेरा जवाब यही होगा कि
‘मैं खुद ही भुगत रहा हूं
तुम्हें रास्ता कहां से बताऊं।’’
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4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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