कोई दोस्त आसानी से बना लोगे
पर पूरी भीड़ ही दोस्त बन जाये
इतना आसान नहीं है
जब तक अपने काम में
दिल का जज्बा नहीं जोड़ दोगे।
चंद दोस्तों के साथ दायरों में
सिमट जाता है आदमी
जरूरी है दायरों से बाहर भी दोस्ती चले
पर यह इतना सरल नहीं है
जब तक मतलबों की कैद से
खुद ही बाहर नहीं निकलोगे।
कदम कदम पर दर्द बिखरा पड़ा है
झूठे हमदर्द तो हर पल मिल जाते हैं
खरीदने निकलो तो बाजार में
बिकने के लिये सजे भी दिख जाते हैं
जो दिल से घाव सहलाये
ऐसे दोस्तों को तभी ढूंढ पाओगे
जब खुद भी उसी राह चलोगे।।
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जिनसे उम्मीद थी कि वह
जिंदगी का रास्ता आसान बनायेंगे।
बिखेर दिए उन्होंने ही कांटे वहां
यह सोचकर कि
उनके बिना हम कहां जायेंगे।
हम खामोश रहे
पर पूरे जमाने देखा है मंजर
देख कर दुःख होता है कि
वह अपना मूंह अब कैसे छिपायेंगे।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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