उन्होंने अपनी नजरें फेर ली
समय समय की बात है
कभी हम उनकी आखों के नूर
हुआ करते थे।
कहने की बात है कि
प्यार एक से होता है
हजारों से नहीं
दिल तो नदिया की तरह बहता है
हर किनारे को अपना कहता है
कभी लहर उठ आती है
कभी थम जाती है
जिस किनारे से गुजरे
पाल लेता है उसके अपने होने का भ्रम
चली जाती तो टूटता है क्रम
फिर भी ताक रहे है उनकी तरफ
शायद उनकी नजरें इनायत हो जायें
जिनकी जुबान से हमें देखते ही
प्यार के लफ्ज फूटा करते थे।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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