Saturday, May 02, 2009

दूसरे के आसरे नहीं भटकना-हिंदी ग़ज़ल

मोहब्बत का दरिया भरकर बादल की तरह आसमान से बरसना.
चाहे खुद को न मिले, चाहत की एक बूँद के लिए भी न तरसना ..

गुलशन में खड़े हैं हजारों फूल, बिछाए खुशबू की चादर
कोई नहीं लौटाता वापस उसे, फिर भी नहीं छोड़ते महकना..

चिराग लड़ता है अँधेरे से, जब तक साथी है रौशनी
बुझने पर खामोश हो जाता है, नहीं जानता भड़कना.,

इस छोटी जिंदगी में करना लोगों की उम्मीद पूरी
खुद निराश हो जाओ तो भी दूसरे के आसरे नहीं भटकना

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1 comment:

वीनस केसरी said...

महोदय,
ये किस बहर पर लिखी गजल है ???


(((अभी मैं सीख रहा हूँ इन बारीकियों को इस लिए समझ न आने पर पूछ लेता हूँ अन्यथा मत लीजियेगा )))

वीनस केसरी

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