Monday, May 18, 2009

इंसान और परिंदे की भूख-हिंदी शायरी

परिंदों की तरह
आकाश में उड़ने की तरह
चाहत करता इंसान
पर उनकी तरह भूख छोटी
रखने में हो जाता बेईमान।

जमीन पर दाना चुगकर
उड़ जाते हैं परिंदे आकाश में
पर पेट भरकर भी
जुटाने लग जाता है
अगली बार की रोटी के लिये इंसान।

अपनी जरूरत से आगे
नहीं उड़ते परिंदे कभी
पर सातवीं पीढ़ी तक का खाना
जुटाते हुए
इंसान की हवस भी शांत नहीं होती कभी
चिड़िया, तोता, कबूतर और कौवा ने
कभी अपने लिये नाम नहीं मांगा
कैसे उड़ सकता है
पूरे विश्व की जमीन अपने नाम
करने के लिए
मरा जा रहा है इंसान।

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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

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