आकाश में उड़ने की तरह
चाहत करता इंसान
पर उनकी तरह भूख छोटी
रखने में हो जाता बेईमान।
जमीन पर दाना चुगकर
उड़ जाते हैं परिंदे आकाश में
पर पेट भरकर भी
जुटाने लग जाता है
अगली बार की रोटी के लिये इंसान।
अपनी जरूरत से आगे
नहीं उड़ते परिंदे कभी
पर सातवीं पीढ़ी तक का खाना
जुटाते हुए
इंसान की हवस भी शांत नहीं होती कभी
चिड़िया, तोता, कबूतर और कौवा ने
कभी अपने लिये नाम नहीं मांगा
कैसे उड़ सकता है
पूरे विश्व की जमीन अपने नाम
करने के लिए
मरा जा रहा है इंसान।
.........................
लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
No comments:
Post a Comment