Thursday, May 14, 2009

अटूट यारी-त्रिपदम (tripadam)

सती सावित्री!
आधुनिक युग में
एक बिचारी।

स्वतंत्रता!
दिलाने की फिर भी
एक लाचारी।

काव्यात्मक
अभिव्यक्ति में
दिखायें हारी।

व्यर्थ होगा
अगर दिखाते हैं
विजेता नारी।

कम शब्द
दर्द अधिक मांगें
ये व्यापारी।

इतने घाव
दिखते नहीं होंगे
बेचें लाचारी।

खरीददार
फंस जाता जाल में
अक्ल मारी।

बदलाव की
केवल बात देखें
कोशिशें जारी।

चलता चक्र
निरंतर स्वयं
बातें हैं सारी।

स्त्री पुरुष
उगे हैं यहां पर
अटूट यारी।

.........................
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1 comment:

निर्मला कपिला said...

बहुत ही भावमय अभिव्यक्ति है बधाई

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