Wednesday, May 27, 2009

जिंदगी दो चेहरों के साथ बिताते हैं-हिंदी शायरी

कुछ हादसों से सीखा
कुछ अफसानों ने समझाया।
सभी जिंदगी दो चेहरों के साथ बिताते हैं
शैतान छिपाये अंदर
बाहर फरिश्ता दिखाते हैं
आगे बढ़ने के लिये
पीठ पर जिन्होंने हाथ फिराया।
जब बढ़ने लगे कदम तरक्की की तरफ
उन्होंने ही बीच में पांव फंसाकर गिराया।
इंसान तो मजबूरियों का पुतला
और अपने जज़्बातों का गुलाम है
कुदरत के करिश्मों ने यही बताया।
.........................
कदम दर कदम भरोसा टूटता रहा
यार जो बना, वह फिर रूठता रहा।
मगर फिर भी ख्यालात नहीं बदलते
भले ही हमारे सपनों का घड़ा फूटता रहा
हमारे हाथ की लकीरों में नहीं था भरोसा पाना
कोई तो है जो निभाने के लिए जूझता रहा।
..............................

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Monday, May 25, 2009

पत्थर और कलम-हिंदी शायरी

यूं तो जंग है हर कदम पर
हम ही अमन का
पैगाम लिये चले आते हैं
तुम डरपोक समझो या
अमन का मसीहा
देखो
किसी पर हम क्या पत्थर उछालें
पत्थर ही उनसे टकरा जाते हैं।

कभी कभी गुस्सा आता है हमें
पर अमृत समझ पी जाते हैं
नहीं समझता जमाना
पर अपने दिल का हाल
कागज पर लफ्जों में बयां कर जाते हैं
पत्थर उड़ाने वाले भी
कौन होते कामयाब
कुछ का बहता खून
कुछ ही अपने ही नाखून
खुद के शरीर में चुभोये जाते है।

गोरे चेहरे अपनी काली नीयत
कितनी देर छिपा सकते हैं
उनके ख्याल आंखों के दरवाजे
पर आ ही जाते हैं
बहुत अभ्यास किया जिंदगी में
अनुभव से यही पाया
पत्थर कभी कलम से
अधिक घाव नहीं कर पाते हैं।

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Wednesday, May 20, 2009

दिल तो नदिया की तरह बहता है-हिंदी शायरी

सामने से आते देख
उन्होंने अपनी नजरें फेर ली
समय समय की बात है
कभी हम उनकी आखों के नूर
हुआ करते थे।

कहने की बात है कि
प्यार एक से होता है
हजारों से नहीं
दिल तो नदिया की तरह बहता है
हर किनारे को अपना कहता है
कभी लहर उठ आती है
कभी थम जाती है
जिस किनारे से गुजरे
पाल लेता है उसके अपने होने का भ्रम
चली जाती तो टूटता है क्रम
फिर भी ताक रहे है उनकी तरफ
शायद उनकी नजरें इनायत हो जायें
जिनकी जुबान से हमें देखते ही
प्यार के लफ्ज फूटा करते थे।

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Monday, May 18, 2009

इंसान और परिंदे की भूख-हिंदी शायरी

परिंदों की तरह
आकाश में उड़ने की तरह
चाहत करता इंसान
पर उनकी तरह भूख छोटी
रखने में हो जाता बेईमान।

जमीन पर दाना चुगकर
उड़ जाते हैं परिंदे आकाश में
पर पेट भरकर भी
जुटाने लग जाता है
अगली बार की रोटी के लिये इंसान।

अपनी जरूरत से आगे
नहीं उड़ते परिंदे कभी
पर सातवीं पीढ़ी तक का खाना
जुटाते हुए
इंसान की हवस भी शांत नहीं होती कभी
चिड़िया, तोता, कबूतर और कौवा ने
कभी अपने लिये नाम नहीं मांगा
कैसे उड़ सकता है
पूरे विश्व की जमीन अपने नाम
करने के लिए
मरा जा रहा है इंसान।

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Sunday, May 17, 2009

कमजोर याददाश्त का बोझ-व्यंग्य क्षणिकाएँ

खूबसूरत चेहरे
यूं ही नहीं हो जाते मशहूर.
सौन्दर्य सामग्री से चमक आती है
आवाज खराब हो तो
कोयल भी खरीद कर सुर देने आती है
देखने वाले क्या
पहचाने सौन्दर्य और आवाज़
सुरक्षा की दीवार कर देती उनको दूर.
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अपनी अदाओं के जलवे दिखाने
तमाम वादों और उम्मीदों का दावा
अपने नाम लिखाने
ढेर सारे अदाकार
चौराहों पर आते हैं.
लोग देखते हैं आँखों से
सुनते हैं कानों से
अक्ल के दरवाजे बंद कर
भीड़ की तरह जुट जाते हैं.
दिन के उजाले में बेचते हैं अंधे जज़्बात
वह सौदागर रात को गुम हो जाते हैं.
मगर नाम उनके फिर भी
जमाने में छा जाते हैं.
बरसों तक लुटते हैं लोग
कहीं पैसा तो कहीं यकीन खो दिया
पर क्या करें लोग
रोटी के टुकड़े और पानी को तरसते
साथ में कमजोर याददाश्त का
बोझ भी उठाते हैं.

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Friday, May 15, 2009

कहानी एक-त्रिपदम

प्रेमी प्रेमिका
जोड़ा वही अच्छा
जो बदनाम।

जज्बातों के
बाजार में जरूरी
प्यार नाम।

शादी के बाद
शादी से पहले के
भुला दें काम।

सौंदर्य बोध
मिलने से पहले
देता आराम।

मिलन बाद
पुरानी यादों पर
आता विराम।

आजाद नारी
प्यार के वास्ते
फिर गुलाम।

कहानी एक
रूप बदलती है
बदले नाम।

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Thursday, May 14, 2009

अटूट यारी-त्रिपदम (tripadam)

सती सावित्री!
आधुनिक युग में
एक बिचारी।

स्वतंत्रता!
दिलाने की फिर भी
एक लाचारी।

काव्यात्मक
अभिव्यक्ति में
दिखायें हारी।

व्यर्थ होगा
अगर दिखाते हैं
विजेता नारी।

कम शब्द
दर्द अधिक मांगें
ये व्यापारी।

इतने घाव
दिखते नहीं होंगे
बेचें लाचारी।

खरीददार
फंस जाता जाल में
अक्ल मारी।

बदलाव की
केवल बात देखें
कोशिशें जारी।

चलता चक्र
निरंतर स्वयं
बातें हैं सारी।

स्त्री पुरुष
उगे हैं यहां पर
अटूट यारी।

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Tuesday, May 12, 2009

वह अपना मूंह कैसे छिपायेंगे-हिंदी शायरी

अपनी हल्की अदाओं से भीड़ में
कोई दोस्त आसानी से बना लोगे
पर पूरी भीड़ ही दोस्त बन जाये
इतना आसान नहीं है
जब तक अपने काम में
दिल का जज्बा नहीं जोड़ दोगे।

चंद दोस्तों के साथ दायरों में
सिमट जाता है आदमी
जरूरी है दायरों से बाहर भी दोस्ती चले
पर यह इतना सरल नहीं है
जब तक मतलबों की कैद से
खुद ही बाहर नहीं निकलोगे।

कदम कदम पर दर्द बिखरा पड़ा है
झूठे हमदर्द तो हर पल मिल जाते हैं
खरीदने निकलो तो बाजार में
बिकने के लिये सजे भी दिख जाते हैं
जो दिल से घाव सहलाये
ऐसे दोस्तों को तभी ढूंढ पाओगे
जब खुद भी उसी राह चलोगे।।
....................................
जिनसे उम्मीद थी कि वह
जिंदगी का रास्ता आसान बनायेंगे।
बिखेर दिए उन्होंने ही कांटे वहां
यह सोचकर कि
उनके बिना हम कहां जायेंगे।
हम खामोश रहे
पर पूरे जमाने देखा है मंजर
देख कर दुःख होता है कि
वह अपना मूंह अब कैसे छिपायेंगे।

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Saturday, May 09, 2009

वर्डप्रेस के दूसरे ब्लाग ने छू लिया 50 हजार का आंकड़ा-आलेख

ब्लाग पत्रिका लेखक अपने उस पाठक का इंतजार कर रहा था जो वर्डप्रेस के शब्द-पत्रिका ब्लाग की पाठ पठन/पाठक संख्या पचास हजार की संख्या पार कराने वाला था। चाहे तो लेखक यह काम स्वयं भी कर सकता था। कौन देखने वाला था पर अपने साथ बेईमानी करना किसी भी मौलिक लेखक के लिये कठिन होता है। इसलिये पहले ही यह संपादकीय लिखना प्रारंभ कर दिया । इस लेखक का यह दूसरा ब्लाग है जो अभी अभी पचास हजार पाठ पठन/पाठक संख्या पार कर गया-प्रसंगवश यह वर्डप्रेस का ही ब्लाग है। पचास हजार की संख्या पार कराने वाला पाठक कोई जबलपुर से था।
वैसे अंतर्जाल पर कोई बात दावे से कहना कठिन है क्योंकि कई बार ब्लाग की पाठ पठन और पाठक संख्या अनेक स्थानों पर देखने से भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है। हो सकता है यह तकनीकी गड़बड़ी के कारण होता हो। आज सुबह इस ब्लाग पर 49982 पाठ पठन/पाठक संख्या का आंकड़ा दर्ज था। उसके हिसाब से अट्ठारह जुड़ने पर पचास हजार हो जाना चाहिऐ था। मगर स्टेटकाउंटर पर इतनी संख्या से एक अधिक होने पर भी इस ब्लाग का डेशबोर्ड 49999 दिखा रहा था। स्टेटकांउटर पर कई बार ऐसा होता है कि ब्लाग पर प्रकाशित त्वरित पाठ पर फोरमों से आई संख्या चार होती है पर हिंदी के ब्लाग एक जगह दिखाने वाले फोरमों पर वह संख्या आठ या दस दिखाई देती है। तब सवाल आता है कि इस तरह के काउंटर सही गणना नहीं करते या वह उनके हिसाब से कोई गणना आवास्तविक है जिसे दिखाने का प्रावधान उसमें नहीं है।
पचास हजार की संख्या पार कराने वाले जबलपुर के उस पाठक का धन्यवाद क्योंकि उसे शायद नहीं मालुम होगा कि वह एक ब्लाग की पाठ पठन/पाठक संख्या का पचास हजार के पार पहुंचा रहा है। ब्लाग स्पाट के ब्लाग पर वर्डप्रेस की अपेक्षा नगण्य पाठ पठन/पाठक संख्या है पर उन पर लिखने का एक अलग ही मजा है।

इस लेखक के 22 ब्लाग में यह ब्लाग चौथे नंबर पर बना था पर हिंदी पत्रिका के बाद सफलता के क्रम में इसका नंबर दूसरा है और इससे पहले बने तीनों ब्लाग अभी बहुत पीछे है जिनमें दो ब्लाग अनंत शब्दयोग और चिंतन हैं और एक वर्डप्रेस का दीपकबापू कहिन है। इसको चुनौती देता एक अन्य ब्लाग ईपत्रिका इसके पीछे चला आ रहा है और हो सकता है कि वह आने वाले दिनों में सफलता के क्रम में पहला स्थान प्राप्त कर ले।
यहां गूगल पेज रैंक की निर्णय क्षमता पर भी सवाल उठाना पड़ रहा है। इस ब्लाग को वहां 3 का अंक प्राप्त है और इसको पीछे छोड़ने वाले ब्लाग शब्दलेख सारथी, हिंदी पत्रिका और शब्दलेख पत्रिका 4 अंकों के साथ इस पर बढ़त बनाये हुए हैं। हिंदी पत्रिका के मुकाबले गूगल पेज रैंक में इसका पिछड़ना पाठों और पाठ पठन/पाठक संख्या को देखते हुए समझा जा सकता है पर शब्दलेख सारथी और शब्दलेख पत्रिका के मुकाबले विचारणीय विषय है। उन दोनों ब्लाग पर न तो पाठ इतने हैं और न ही पाठक संख्या। कहने का तात्पर्य यह है कि यह सब बातें अजीब हैं-आप अंतर्जाल पर कितने भी जानकार हो जायें पर यह नहीं कह सकते कि पूरी तरह से समझ गये हैं।
संभव है कि गूगल पेज रैंक के साफ्टवेयर में कोई कमी नहीं हो पर इस ब्लाग को 3 की रैंक होने पर कुछ ऐसे आंकड़े हैं जो ऐसे प्रश्न उठाते हैं और शायद यही प्रश्न इस अंतर्जाल के लिये दिलचस्पी बढ़ाने का कारण भी हैं।
इस लेखक ने बुधवार को ही यह अनुमान लगाया था कि यह ब्लाग शनिवार दोपहर तक पचास हजार की पाठ पठन/पाठक संख्या पार करेगा क्योंकि शनिवार और रविवार को इस ब्लाग पर आवागमन अधिक होता है और बाकी दिन उसके मुकाबले आधा या उससे थोड़ा अधिक देखने को मिलता है। इसके कुछ ज्ञात कारण है जिनके बारे में दावे से लिखना कठिन है तो कुछ अज्ञात भी हो सकते हैं।

आत्ममुग्ध होकर अपने लिखे की तारीफ करना ठीक नहीं है पर इस ब्लाग की पाठ पठन/पाठक संख्या 50 हजार पार करने के आंकड़े में उन लोगों की जरूर दिलचस्पी होगी जो हिंदी ब्लाग जगत में एक लक्ष्य के साथ सक्रिय हैं। शायद उनके लिये इसमें कोई जानकारी हो। इस पर स्टेटकाउंटर अभी पंद्रह दिन पहले ही लगाया गया है क्योंकि उसे वर्डप्रेस पर लगाना नहीं आ रहा था। ब्लागस्पाट के ब्लाग जहां आसानी से से तकनीकी जानकारी उपलब्ध है वहां तो सभी सैटिंग आसानी से सीखी जा सकती है। फिर अनेक ब्लाग लेखक ब्लाग स्पाट की तकनीकी जानकारी लिखते रहते हैं मगर वर्डप्रेस को समझना इसलिये भी कठिन है क्योकि उसके बारे में लिखने और बताने वाले बहुत कम लिखते हैं। इस पर प्रतिदिन आने वाले पाठकों की संख्या साठ से पचहत्तर नियमित रूप से है पर पाठ पठन की संख्या कभी अधिक और कम होती रहती है। अभी हाल ही में एक ही दिन में 238 की पाठ पठन संख्या आठ अप्रैल 2009 को पार की। 351 पाठों से सजे इस ब्लाग के निरंतर आगे बढ़ने की संभावना है।

अभी एक सर्वे आया था जिससे पता चला कि करीब 95 प्रतिशत ब्लाग लेखक ब्लाग स्पाट और 15 प्रतिशत वर्डप्रेस पर लिखना पसंद करते हैं। इसका मतलब साफ है कि अगर आपका वर्डप्रेस का ब्लाग, हिंदी ब्लाग एक जगह दिखाने वाले फोरमों पर नहंी दिखता और अगर उस पर लिखते हैं तो अपने मित्रों से दूर हो जाते हैं। यही कारण है कि इस लेखक ने ब्लाग स्पाट और वर्डप्रेस के ब्लागों पर अलग अलग दृष्टिकोण अपनाया है। पहले पाठ लिखकर ब्लागस्पाट के ब्लाग पर प्रकाशित किया जाता है फिर उसे वर्डप्रेस के ब्लाग पर रखा जाता है। इस लेखक के ब्लाग स्पाट के सारे ब्लाग उन फोरमों पर रहते हैं और ब्लाग लेखक मित्रों से संपर्क का वही जरिया भी है। एसा नहीं है कि ब्लागस्पाट के ब्लाग बेकार है-कम से कम गूगल पेज रैंक में उनकी स्थिति देखकर तो यही लगता है कि उनकी अपनी उपयोगिता है। इस लेखक का शब्दलेख सारथी ब्लाग स्पाट पर ही है जिसे 4 का अंक प्राप्त है। इस लेखक के कम से दस ब्लाग ऐसे हैं जिनको गूगल पेज रैंक में तीन की वरीयता प्राप्त हैं इसका मतलब यह है कि वह इस ब्लाग की अपेक्षा कम पाठ और पाठ पठन/पाठक संख्या होने के बावजूद इसे गूगल पेज रैंक में तीन का अंक प्राप्त कर उसे बराबरी की चुनौती दे रहे हैं। बाकी अंतर्जाल पर जो पाठ पठन/पाठक संख्या में कितना भ्रम है और कितना सच यह तो कोई विशेषज्ञ ही बता सकता है। इस पर मित्र ब्लाग लेखकों और पाठकों द्वारा इस लेखक को निरंतर प्रोत्साहन देने के लिये हार्दिक आभार प्रदर्शन इस विश्वास के साथ कि वह आगे भी अपना समर्थन जारी रखेंगे।
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Wednesday, May 06, 2009

बेकद्रों की महफिल में मत जाना-हिंदी शायरी

बेकद्रों की महफिल में मत जाना
बहस के नाम पर वहां बस कोहराम मचेगा
पर कौन, किसकी कद्र करेगा।
मुस्कराहट का मुखौटा लगाये सभी
हर शहर में घूम रहे हैं
जो मिल नहीं पाती खुशी उसे
ढूंढते हुए झूम रहे हैं
दूसरे के पसीने में तलाश रहे हैं
अपने लिये चैन की जिंदगी
उनके लिये अपना खून अमृत है
दूसरे का है गंदगी
तुम बेकद्रों को दूर से देखते रहकर
उनकी हंसी के पीछे के कड़वे सच को देखना
दिल से टूटे बिखरे लोग
अपने आपसे भागते नजर आते हैं
शोर मचाकर उसे छिपाते हैं
उनकी मजाक पर सहम मत जाना
अपने शरीर से बहते पसीने को सहलाना
दूसरा कोई इज्जत से उसकी कीमत
कभी तय नहीं करेगा।

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Sunday, May 03, 2009

आस्था का हिलना-हास्य व्यंग्य (hasya vyangya in hindi)

कहीं न्यूजीलैंड में इस बात को लेकर लोग नाराज है कि ‘हनुमान जी पर कंप्यूटर गेम बना दिया गया है और बच्चे उनकी गति को नियंत्रित करने का खेल कर रहे हैं।’ इससे उनकी धार्मिक आस्थायें आहत हो रही हैं। तमाम तरह के आक्षेप किये जा रहे हैं।
एक बात समझ में नहीं आती कि लोग अपने धार्मिक प्रतीकों को लेकर इस तरह के विवाद खड़ा कर आखिर स्वयं प्रचार में आना चाहते हैं या उनका उद्देश्य कंपनियों के उत्पाद का प्रचार करना होता है। कहीं किसी अभिनेत्री ने माता का मेकअप कर किसी रैंप में प्रस्तुति दी तो उस पर भी बवाल बचा दिया। टीवी चैनलों ने अपने यहां उसे दिखाया तो अखबारों ने भी इस समाचार का छापा। प्रचार किसे मिला? निश्चित रूप से अभिनेत्री को प्रचार मिला। अगर कथित धार्मिक आस्थावान ऐसा नहीं करते तो शायद उस अभिनेत्री का नाम कोई इस देश में नहीं सुन सकता था।
कई बार ऐसा हुआ कि अन्य धार्मिक विचाराधारा के लोगों ने अपने धार्मिक प्रतीकों के उपयोग पर बवाल मचाये हैं पर उनकी देखादेखी भारतीय आस्थाओं के मानने वाले भी ऐसा करने लगे तो समझ से परे है। कहने को भारतीय आस्थाओं के समर्थक कहते हैं कि ‘जब दूसरे लोगों के प्रतीकों पर कुछ ऐसा वैसा बनने पर बवाल मचता है तो हम क्यों खामोश रहे?’
यह तर्क समझ से परे है। इसका मतलब यह है कि भारतीय आस्थाओं को मानने वाले अपने अध्यात्मिक दर्शन का मतलब बिल्कुल नहीं समझते। नीति विशारद चाणक्य ने कहा है कि ‘हृदय में भक्ति हो तो पत्थर में भगवान हैं।’
यानि अगर हृदय में नहीं है तो वह पत्थर ही है जिसे दुनियां को दिखाने के लिये पूज लो-वैसे अधिकतर लोग अपने दिल को तसल्ली देने के लिये पत्थर की पूजा करते हैं कि हमने कर ली और हमारा काम पूरा हो गया। हमारा अध्यात्मिक दर्शन स्पष्ट कहता है कि सर्वशक्तिमान परमात्मा का कोई रूप नहीं है। उसके स्वरूप की कल्पना दिमाग में स्थापित कर उसका स्मरण करने का संदेश है पर अंततः निराकार में जाने का आदेश भी है।
अब अगर कोई कंप्यूटर पर हनुमान जी पर गेम बनाता है या कोई अभिनेत्री माता का चेहरा बनाकर रैंप पर अपनी प्रस्तुति देती है तो उसमें क्या आप सर्वशक्तिमान परमात्मा का रूप देख रहे हैं जो ऐसी आपत्ति करते हैं। अनेक प्रकार की भौतिक चीजों से बना कंप्यूटर अगर खराब हो जाये तो उस कोई आकृति नहीं दिख सकती। मतलब यह आकृतियां तो पत्थर की मूर्ति से भी अधिक छलावा है। उसमें अपनी अपने आस्थाओं की मजाक उड़ते देखने का अहसास ही सबसे बड़ा अज्ञान है-बल्कि कहा जाये कि उसे मजाक कहकर हम अपनी भद्द पिटवा रहे हैं। आस्था या भक्ति एक भाव है जिनको भौतिक रूप से फुटबाल मैच की तरह नहीं खेला जाता कि वह हम पर गोल कर रहा है तो उसे हमें गोलकीपर बनकर रोकना होगा या दूसरे ने गोल कर दिया है तो वह हमें उसी तरह उतारना है।
फिर आजकल यह मुद्दे ज्यादा ही आ रहे हैं। जहां तक मजाक का सवाल है तो अनेक ऐसी हिंदी फिल्में बन चुकी हैं जिसमें भारतीय संस्कृति से जुड़े अनेक पात्रों पर व्यंग्यात्मक प्रस्तुति हो चुकी है और उस पर किसी ने आपत्ति नहीं की। अब इसका एक मतलब यह है कि हम अपने धार्मिक प्रतीकों का सम्मान करना दूसरों से सीख रहे हैं। यह एक भारी गलती है। होना तो यह चाहिये कि हम दूसरों को सिखायें कि इस तरह धार्मिक प्रतीकों पर जो कार्यक्रम बनते हैं या प्रस्तुतियां होती हैं उससे मूंह फेर कर उपेक्षासन करें क्योंकि सर्वशक्तिमान के स्वरूप का कोई आकार नहीं है। अगर हमारे हृदय में हमारी आस्था दृढ है तो उसका कोई मजाक उड़ा ही नहीं सकता। अगर धार्मिक भाव से आस्था दृढ़ नहीं होती और वह ऐसी जरा जरा सी बातों पर हिलने लगती हैं तो इसका मतलब यह है कि हमारे हृदय में स्वच्छता का अभाव है। धार्मिक आस्था अगर ज्ञान की जननी नहीं है तो फिर उसका कोई आधार नहीं है।

दूसरा मतलब यह है कि उस कंप्यूटर गेम को शायद भारतीय बाजार में प्रचार दिलाने के लिये यह एक तरीका है। इससे यह संदेह होता है कि विरोध करने वाले अपनी आस्था का दिखावा कर रहे हैं। अब अगर कंप्यूटर पर कोई आकृति हनुमान जी की तरह बनी है तो हनुमान जी मान लेने का मतलब यह है कि वह आपके आंखों में ही बसते हैं, दिल में नहीं। दिल में बसे होते तो चाहे कितने प्रकार की आकृतियां बनाओ आपको वह स्वीकार्य नहीं हो सकती। बात इससे भी आगे कि अगर वह आपके इष्ट है तो आप भी उनके गेम को खेलिए-इससे वह रुष्ट नहीं हो जायेंगे। बस जरूरत है कि वह गेम भी आस्था और विश्वास से खेलें। अगर अपने इष्ट के स्वरूप में हमारी अटूट श्रद्धा है तो वह कभी इस तरह खेलने में नाराज नहीं होंगे और फिर हमसे परे भी कितना होंगे? जो पास होता है उसी के साथ तो खेला जाता है न!
वाल्मीकी ऋषि का नाम तो सभी ने सुना होगा। ‘मरा’ ‘मरा’ कहते हुए राम को ऐसा पा गये कि उन पर इतना बड़ा ग्रंथ रच डाला कि उनके समकक्ष हो गये। ऐसा कौन है जो भगवान श्रीराम को जाने पर वाल्मीकि को भूल जाये? आशय यह है कि आस्था और भक्ति दिखावे की चीज नहीं होती और न भौतिक रूप से इस जमीन पर बसती है कि वह टूटें और बिखरें।
इस तरह जिनकी आस्था हिलती है या टूटती है उनके दिल लगता है कांच के कप की तरह ही होती है। एक कप टूट गया दूसरा ले आओ। एक इष्ट की मूर्ति से बात नहीं बनती दूसरे के पास जाओ। उसके बाद भी बात नहीं बनती तो किसी सिद्ध के पास जाओ। इससे भी बात न बने तो अपनी भक्ति का शोर मचाओ ताकि लोग देखें कि भक्त परेशान है उसकी मदद करो। एक तरह से प्रचार की भूख के अलावा ऐसी घटनायें कुछ नहीं है। उनके लिये आस्था का हिलने का मतलब है सनसनी फैलाने का अवसर मिलना।
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Saturday, May 02, 2009

दूसरे के आसरे नहीं भटकना-हिंदी ग़ज़ल

मोहब्बत का दरिया भरकर बादल की तरह आसमान से बरसना.
चाहे खुद को न मिले, चाहत की एक बूँद के लिए भी न तरसना ..

गुलशन में खड़े हैं हजारों फूल, बिछाए खुशबू की चादर
कोई नहीं लौटाता वापस उसे, फिर भी नहीं छोड़ते महकना..

चिराग लड़ता है अँधेरे से, जब तक साथी है रौशनी
बुझने पर खामोश हो जाता है, नहीं जानता भड़कना.,

इस छोटी जिंदगी में करना लोगों की उम्मीद पूरी
खुद निराश हो जाओ तो भी दूसरे के आसरे नहीं भटकना

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