मुश्किल में देश है
हल के लिये सजती हैं महफिलें
बहसों में रोज वही चेहरे
नये अल्फाजों के साथ आते हैं,
नतीजा सिफर है
कहने वालों को मालुम नहीं क्या कहा
सुनने वाले भी भूल जाते हैं।
कहें दीपक बापू
हम तो चले भगवान भरोसे हमेशा
कभी खुश हुए कभी गमगीन,
पर्दे पर आते चेहरे देखे
कोई मीठे कोई नमकीन,
सभी बो रहे जमाने के लिये कांटे
अपने लिये उधार मे फूल लाते हैं।
--------------
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
हल के लिये सजती हैं महफिलें
बहसों में रोज वही चेहरे
नये अल्फाजों के साथ आते हैं,
नतीजा सिफर है
कहने वालों को मालुम नहीं क्या कहा
सुनने वाले भी भूल जाते हैं।
कहें दीपक बापू
हम तो चले भगवान भरोसे हमेशा
कभी खुश हुए कभी गमगीन,
पर्दे पर आते चेहरे देखे
कोई मीठे कोई नमकीन,
सभी बो रहे जमाने के लिये कांटे
अपने लिये उधार मे फूल लाते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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