Monday, June 30, 2014

तमाशाबीनों की भीड़ में-हिन्दी व्यंग्य कविता(tamasshabinon ki bhid mein-hindi vyangya kavita)




माशा करने वाले इस जहान में हो जाते हैं मशहूर,
तमाशाबीनों की भीड़ लगती अक्लमंद हो जाते दूर।
कभी चेहरे बदलते कभी तमाशा करने का बदलता ढंग,
सच्चाई बनी रहती अपनी जगह ऊपर से  बदलता रंग,
अपनी बुरी हालात सुनाओ हमदर्द भी बहुत मिल जाते हैं,
मगर उनकी रस्म अदायगी के शब्दों से कान हिल जाते हैं,
कोई अक्ल का हुनरमंद गरीब के लिये डुगडुगी बजा रहा है
कोई बीमार के लिये कागजों पर दवा सजा रहा है,
कोई ज़माने को तरक्की का सपना दिखाता है,
कोई नई जिंदगी के तरीके से सिखाता है,
कहें दीपक बापू बातों के शेर हो जाते काम में ढेर
पर्दे के तमाशों पर बेकार है खर्च करना अपने नूर।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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Thursday, June 19, 2014

कब तक हिन्दी विरोध करेंगे-हिन्दी व्यंग्य कवितायें(kab tak hindi virodh karenge-hindi satire poem)



हिन्दी भाषा का विरोध वह हमेशा जमकर करेंगे,
अंग्रेजी की गुलामी करते हुए सीना चौड़ा करेंगे।
कहें दीपक बापू रस्सी जलती पर ऐंठन नहीं जाती
कब तक ऐसे लोग राष्ट्रभाषा से पूरी ताकत से लड़ेंगे।
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अंग्रेजी में अपने कारनामों का वह काला रंग भरते हैं,
हिन्दी भाषा में उनका सच न आये इसलिये वह डरते हैं।
कहें दीपक बापू देश पर अंग्रेजी के वकालत करने वाले बहुत
अपने पाखंड पर हिन्दी में अभद्र शब्दों के प्रहार से कंपते हैं।
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वह हिन्दी से मूंह चुराकर अंग्रेजी के साथ डोलेंगे,
पेट भरे अंग्रेजी से उनके इसलिये हिन्दी में जुबान नहीं खोलेंगे।
कहें दीपक बापू अंग्रेजी में सीना तना रहा जिनका
उतर जायेगा जब अहंकार हिन्दी में ही रोते हुए बोलेंगे।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
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Sunday, June 08, 2014

अंतर्जाल पर स्वांत सुखाय लिख लिया समझ लो अच्छा दिन है-हिन्दी लेख(interne par swant sukhay likh liya samajh lo achchha din hai-hindi lekh)




          देश में राजनीतिक परिवर्तन के साथ ही इस बात पर भी बहस एक टीवी चैनल पर चली कि क्या हिन्दी के भी अच्छे दिन आने वाले हैं? दरअसल इस बहस का आधार यह था कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार के एक बहुत समर्थक  भी हैं।  वह भविष्य में  विदेशी नेताओं से हिन्दी में बात करेंगे।  इसे लेकर हिन्दी के कुछ विद्वान उत्साहित हैं।  उनका मानना है कि जिस तरह देश के आर्थिक विकास की लहर पूरे देश के अच्छे दिन आने के नारे को बहाकर लायी है उसी तरह हिन्दी भी अब अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानजनक स्थान प्राप्त करेगी।  हमारा मानना है कि हिन्दी भाषा अंततः भविष्य में वैश्विक भाषा बनेगी पर इसके लिये भारत के सामान्य जनमानस में यह विश्वास जगाना आवश्यक है कि भविष्य में उसका काम बिना हिन्दी के चलने वाला नहीं है।
         इसमें कोई संदेह नहीं है कि नये प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रभाव से ओतप्रोत हैं पर यह भी सच है कि देश में आर्थिक विकास करने के साथ ही संास्कृतिक उत्थान बिना सामान्य जन के बिना  संभव नहीं है।  हम यहां केवल हिन्दी भाषा की चर्चा कर रहे हैं इसलिये यह कहने में संकोच नहीं है कि इस संबंध में आम भारतीय का रवैया भी वही है जो उसका अपने जीवन को लेकर है।  जिस तरह वह यह आशा करता है कि उसके जीवन का उद्धार कोई अवतारी पुरुष करेगा वही हिन्दी के संबंध में भी उसकी धारणा है।  हर सभ्रांत व्यक्ति चाहता है कि उसके बच्चे को अंग्रेजी में महारथ हासिल करना चाहिये और हिन्दी का सम्मान दूसरे लोग करें।  स्थिति यह है कि अनेक कलाकारों, विद्वानों, तथा लेखकों का जीवन हिन्दी भाषा के दम पर चल रहा है पर वह अपनी बात कहने के लिये अंग्रेजी का सहारा लेते हैं।  सबसे बड़ी बात यह है कि सभ्रांत वर्ग जो कि भाषा, संस्कृति, संस्कार तथा ज्ञान की रक्षा में सबसे ज्यादा योगदान देता है उसमें आत्मविश्वास का अभाव है। उसे नहीं लगता कि हिन्दी के सहारे आर्थिक विकास किया जा सकता है। उसका दूसरा संकट यह भी है कि वह पूरी तरह से अंग्रेंजी का आत्मसात भी नहीं कर पाया है। हमने अनेक कलाकारों, विद्वानों, तथा लेखकों को हिन्दी की खाते और अंग्रेजी की बजाते देखा है पर यह पता ही नहीं लग पाता कि वह अंग्रेजी में ही सोचते हैं या हिन्दी में सोचकर अंग्रेजी में बोलते हैं।  हिन्दी विद्वानों में भी भारी अंतर्द्वंद्व है। वह हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने के लिये उसमें जमकर अंग्रेजी शब्द ठूंसने की बात करता है। परिणाम यह हो रहा है कि एक हिंग्लििश भाषा का निर्माण हो रहा है जो भविष्य में किसी काम की नहीं है। भाषा की रक्षा साहित्य से होती है और हिंग्लिश वाले किसी साहित्य रचना योग्य नहीं लगते।  जिनकी हिन्दी लेखन में रुचि है वह अपनी भाषा में शब्दों का प्रयोग सावधानी से करते हैं।
     बाज़ार हिन्दी भाषियों को उपभोक्ता से अधिक स्तर प्रदान नहीं करता।  अंतर्जाल पर भी यही हाल है। अंग्रेजी पर टीका टिप्पणी करने वालों को प्रचार माध्यम महत्व देते हैं।  किसी के हिन्दी वाक्य अगर प्रचारित होते हैं तो वह कोई बड़ा धनी, पदवान या कलाकार होता है।  सामान्य लोगों को अपने फेसबुक या ट्विटर पर आने वालों को यह प्रचार माध्यम दिखाते हैं पर किसी खास विषय पर लिखे गये किसी ब्लॉग या फेसबुक के ऐसे पाठ की चर्चा कभी नहीं देखी गयी जो किसी सामान्य लेखक ने लिखा हो।
     हिन्दी के अच्छे दिन आयेंगे या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता पर हिन्दी में लेखन करने वालों को यह कदापि आशा नहीं करना चाहिये कि उन्हें कोई सम्मान या पुरस्कार  चमचागिरी या संगठित ठेकेदारों की चरणवंदना किये बिना मिल जायेगा। हिन्दी लेखन तो स्वांत सुखाय ही हो सकता है।  अगर आप लेखक हैं तो अपनी कोई रचना लिख लें तो समझिये वही अच्छा दिन है। पिछले सात वर्षों से अंतर्जाल पर लिखते हुए हमने यही अनुभव किया है।

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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