Thursday, August 12, 2010

ईमानदारी का धब्बा-व्यंग्य कवितायें (imandari ka dhabba-satire poems in hindi)

अज़गर करे ना चाकरी
पंछी करे न काम
सबके दाता जो ठहरे राम,
असली खिलाड़ी कभी न खेले खेल,
निकाल लेते कमीशन में ही तेल
प्रतियोगिता के ठेके में कमाकर ही करते नाम।
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अपने ज़मीर में कभी
ईमान को नहीं पालना,
वरना उसे बेच नहीं पाओगे,
धोखे में बेच देना उसका नाम लेकर,
बेईमान कहलाने से बच जाओगे।
सच तो यह है कि
तरक्की की राह बहुत कठिन है,
न रहती रात याद, न रहता दिन है,
फिर बिना दौलत के कौन देता इज्जत,
अपने ईमान पर यकीन हो तो
अपने अंदर मूर्तिमान बनाकर रख लेना,
अपनी जरूरतों को भी कम कर देना,
तब बाज़ार में नहीं बिकेगा ज़मीर
मगर दुनियां और खुद को धोखा देने से बच जाओगे,
यह अलग बात है कि
ज़माने की नज़र में
ईमानदारी का धब्बा अपने नाम के आगे लगा पाओगे।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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