Saturday, June 09, 2018

बड़े साहब के हाथ काली लकीर से हैं बंधे-दीपकबापूवाणी (Bade Sahab ke haath kali lakir se hain&DeepakBapuWani)

बड़े साहब के हाथ काली लकीर से हैं बंधे, हुक्म के बोझ लिपिक चपरासी के हैं कंधे। 
‘दीपकबापू’ रिश्वत के दाम एक से हुए दो हजार, राजप्रहरी बने जिनके काले हैं धंधे।।
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राजकाज के धंधे से अपना घर चलाते, लोकतंत्र यज्ञ अपने में वंश के दीप जलाते।
‘दीपकबापू’ चंदे से बढ़ाते रहते विदेशी खाता, जनमत का सोना धनबल में गलाते।।
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जंगल में जहां पेड़ थे पत्थर के महल खड़े हैं, प्यार से ज्यादा कागजी शब्द बड़े हैं।
‘दीपकबापू’ भक्ति बेचते हुए विक्रेता बने भगवान, विद्वान शब्द अपने नाम से जड़े हैं।।
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रोटी  की चिंता में क्यों घुले जाते, हमारे नाम दाने लिखे सोच में क्यो धुले जाते।
‘दीपकबापू’ भर लिये भंडार अन्न धन के, फिर बेईमानी की तराजू में क्यों तुले जाते ।।
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अन्न जल सहज मिले सत्य क्या मानेंगे, मायापुरी के वासी भजन भाव क्या जानेंगे।
‘दीपकबापू’ पहियों पर सवारी करने वाले, पदयात्रा के पथ का आनंद क्या जानेंगे।

Friday, June 01, 2018

किसी का दिल नहीं दरिया-दीपकबापूवाणी (Kisi ka Dil nahin Dariya-DeepakBapuwani)

ज़माना पूरा दर्द में डूबा है,
सच्चा हमदर्द कहां मिलेगा।
कहें दीपकबापू घन के पीछे सब
प्यार में इंतजार में कौन मिलेगा।
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सड़कों पर फैला धुंआ काला
नाक में बना दुर्गंध का जाला।
कहें दीपकबापू विकास का पथ है
नकली फूल असली कांटों वाला।
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 किसी का दिल नहीं दरिया
शेर जैसे कोई नहीं जिया।
कहें दीपकबापू स्वार्थी इंसान
कभी भक्ति रस नहीं पिया।
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नियम कभी माने नहीं
संयम का अर्थ जाने नहीं।
कहें दीपकबापू स्वयंभू संत या सेवक
ज्ञान मार्ग पर चलना जाने नहीं।
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कोई दूसरा बताये जो ख्वाब
हम अपने दिल पर क्यों लेते हैं।
कहें दीपकबापू अपने अंदर के
जज़्बात पराये जैसा क्यों लेते हैं।
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गले में काम के बंधन डाले
आवारा जिंदगी का सपना देखते।
कहें दीपकबापू दिल से यायावर
हर पराये में भी अपना देखते।।
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