नये लेखक लेखिकाओं को लिखते हुए इस बात की झिझक हो सकती है कि उनके लिखे पर कोई हंसे नहीं। वह समाचार पत्र पत्रिकाओं में तमाम प्रसिद्ध लेखकों की रचनायें पढ़कर यह सोचते होंगे कि वह उन जैसा नहीं लिख सकते। कई युवक युवतियां तो ऐसे हैं जो अपनी रचनायें लिखकर अपने पास ही रख लेते हैं कि कहीं कोई उस पर पढ़कर हंसे नहीं। संभव है ऐसे ही कुछ नये लेखकों के पास इंटरनेट की सुविधा के साथ ब्लाग लिखने की तकनीकी जानकारी भी हो पर वह इसलिये नहंी लिखते हों कि ‘कहीं कोई पढ़कर मजाक न उड़ाये।’
ऐसे नये लेखक अपने आप को भाग्यशाली समझें कि उनके पास अंतर्जाल पर ब्लाग लिखने के अवसर मौजूद हैं जो पुराने लेखकों के पास नहीं थे। हां, उन्हें लिखने को लेकर अपने अं्रदर कोई संकोच नहीं करना चाहिये। वह जिन पत्र पत्रिकाओं के प्रसिद्ध लेखकों की रचनाओं को लेकर अपने अंदर कुंठा पाल लेते हैं उनके बारे में अधिक भ्रम उन्हें नहीं रखना चाहिये। वैसे तो हर आदमी जन्मजात लेखक होता है पर अभ्यास के बाद वह समाज में लेखक का दर्जा प्राप्त करता है। अगर आप लिखना प्रारंभ करें तो धीरे धीरे आपको लगने लगेगा कि जिन बड़े लेखकों को पढ़कर आप कुंठा पाल रहे थे उनसे सार्थक तो आप लिख रहे है। सच बात तो यह है कि स्वतंत्रता के बाद देश में हर क्षेत्र में ठेकेदारी का प्रथा का प्रचलन शुरु हो गया जिसमें बाप जो काम करता है बेटा उसके लिये उतराधिकारी माना जाता है। यही हाल हिंदी लेखन का भी रहा है।
अनेक लोग ऐसे भी हैं जो हिंदी में बेहतर नाटक,कहानी या उपन्यास न लिखने की शिकायत करते हैं। दरअसल यह वही लोग हैं जो ठेकेदारी के चलते प्रसिद्धि प्राप्त कर गये हैं पर उनको हिंदी के सामान्य लेखक के मनोभाव का ज्ञान नहीं रहा। हिंदी में बहुत अच्छा लिखने वालों की कमी नहीं है पर उनको अवसर देने वाले तमाम तरह के बंधन लगा कर उन्हें अपनी मौलिकता छोड़ने को बाध्य करे देते हैं। यही कारण है कि पिछले पचास वर्षों से जातिवाद, क्षेत्रवाद,और भाषावाद के कारण हिंदी में बहुत कम साहित्य लिखा गया है। जिन लोगों ने इन वादों और नारों की पूंछ पकड़कर प्रसिद्धि की वैतरणी पार की है उनका सच आप तभी समझ पायेंगे जब अंतर्जाल पर स्वतंत्र लेखन करेंगे। अधिकतर लेखक या तो प्रतिबद्ध रहे या बंधूआ। दोनों ही परिस्थितियों में मौलिक भाव का दायरा संकुचित हो जाता है।
अगर आप कविता लिखना चाहते हैं तो लिखिये। अब वह कविता इस तरह भी हो तो चलेगी।
होटल में जाने को मचलने लगा हमारा दिल
खाया पीया जमकर, बैठ गया वह जब आया बिल
या
फिल्मी गाने सुनते ऐसे हुए, चेहरे परं चांद जैसा लगता तिल
जब भी आता है कोई ऐसा चेहरा, गाने लगता अपना दिल
आप यह मत सोचिये कि कोई हंसेगा। हो सकता है कुछ लोग हंसें पर यह सबसे आसान काम है। कोई भी किसी पर हंस सकता है। आप तो यह मानकर चलिये कि आपने अपने मन की बात लिख ली यही बहुत है।
अगर आपको गद्य लिखने का विचार आया तो यह भी लिख सकते हैं।
आज मैं सुबह नहाया, फिर नाश्ता किया और उसके बाद बाहर फिल्म लिखने गया और रात को घर आया और खाना खाया और सो गया। अब कल सोचूंगा कि क्या करना है?
ऐसे ही आप लिखना प्रारंभ कर दीजिये। अभ्यास के साथ आप के अंदर का लेखक परिपक्व होता चला जायेगा। वैसे इसके साथ ही दूसरों का लिखा पढ़ें जरूर! दूसरे का पढ़ने से न केवल विषय के चयन का तरीका मिलता है बल्कि उससे अपनी एक शैली स्वतः निर्मित होती जाती है। हम जैसे पढ़ते हैं वैसे ही लिखने का मन करता है और फिर अपनी एक नयी शैली अपने आप हमारी साथी बन जाती है।
आप लोग पत्र पत्रिकाओं में बड़ी कहानियां,व्यंग्य और निबंध पढ़ते हैं और वैसा ही लिखना चाहते हैं तो इस पर अधिक विचार मत करिये। अंतर्जाल पर संक्षिप्तता का बहुत महत्व है। सबसे बड़ी बात यह है कि यहां मौलिकता और स्वतंत्रता के साथ लिखने की जो सुविधा है उसका उपयोग करना जरूरी है। इस लेखक से अनेक लोग अपनी टिप्पणियों में सवाल करते हैं कि आप अपनी रचनायें पत्र पत्रिकाओं में क्यों नहीं भेजते?
इसका सीधा जवाब तो यही है कि भई, हम तो पांच रुपये की डाक टिकट लगाकर लिफाफे भेजते हुए थक गये। अपनी रचना अपने हिसाब से की पर वह उन पत्र पत्रिकाओं के अनुकूल नहीं होती । वैसे अधिकतर समाचार पत्र पत्रिकाओं के वैचारिक, साहित्यक और व्यवसायिक प्रारूप हैं जिनके ढांचे में हमारी रचनायें फिट नहीं बैठती। हां, यह सच है कि आप जो लिखते हैं उसका उस पत्र या पत्रिका के निर्धारित प्रारूप में फिट होना आवश्यक है। जो लेखक इन प्रारूपों की सीमा में लिखते हैं वही प्रसिद्ध हो पाते हैं-यह सफलता भी उन्हीं लेखकों को नसीब में आती है जिनके संबंध होते हैं। अधिकतर पत्र पत्रिकाओं के मुख्यालय बड़े शहरों में होते हैं और छोटे शहरों के लेखक वहां तक नहीं पहुंच पाते। वैसे वह उनके तय प्रारूप के अनुसार लिखें तो तो भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उनकी रचना छप ही जाये।
बहरहाल जिन नये लेखकों के अवसर मिल रहा है उनके लिये तो अच्छा ही है पर जिनको नहीं मिल रहा है वह यहां लिखें। उन्हें पत्र पत्रिकाओं वाले प्रारूपों का ध्यान नहीं करना चाहिये क्योंकि यहां संक्षिप्पता, मौलिकता और निष्पक्षता के साथ चला जा सकता है जबकि वहां कुछ न कुछ बंधन होता ही है। आपके ब्लाग एक जीवंत किताब की तरह हैं जो कहीं अलमारी में बंद नहीं होंगे और उन्हें पढ़ा ही जाता रहेगा। आप इस पर विचार मत करिये कि आज कितने लोगों ने इसे पढ़ा आप यह सोचिये कि आगे इसे बहुत लोग पढ़ने वाले हैं। मेरे ऐसे कई पाठ हैं जो प्रकाशित होने वाले दिन दस पाठक भी नहीं जुटा सके पर वह एक वर्ष कें अंदर पांच हजार की संख्या के निकट पहुंचने वाले हैं।
हिंदी लेखन में स्थिति यह हो गयी है कि लेखक की पारिवारिक, व्यवसायिक और सामाजिक परिस्थिति कें अनुसार उसकी रचना को देखा जाता है। यही कारण है कि पत्र पत्रिकाओं में लेखन से इतर कारणों से प्रसिद्धि हस्ती के लेखक प्रकाशित होते हैं या फिर उन अंग्रेजी लेखकों के लेख प्रकाशित होते हैं जो अंग्रेजी में आम पाठक की उपेक्षा से तंग आकर हिंदी की तरफ आकर्षित हुए-इस बारे में संदेह है कि वह स्वयं उनको लिखते होंगे क्योंकि उन्होंने ताउम्र अंग्रेजी में लिखा। संभवतः अपने लेखों को अंग्रेजी में लिखकर उसका हिंदी में अनुवाद कराते होंगे या बोलकर लिखवाते होंगे।
अगर कोई फिल्मी हीरो अपना ब्लाग बना ले तो उसे एक ही दिन में हजारों पाठक मिल जायेंगे पर आप अगर एक आप लेखक हैं तो फिर आपको अपने लिखे के सहारे ही धीरे धीरे आगे बढ़ना होगा। ऐसे में यही बेहतर है कि आप संकोच छोड़कर लिखे जायें। इस विषय में हमारे एक गुरुजी का कहना है कि तुम तो मन में आयी रचना लिख लिया करो। हो सकता है उस समय उसे कोई न पूछे पर जब तुम्हारा नाम हो जाये तो लोग उसी की प्रशंसा करें।
इसलिये जिन लोगों के पास ब्लाग लिखने की सुविधा है उन्हें अपना लेखक कार्य शुरु करने में संकोच नहीं करना चाहिये। हिंदी में गंभीर लेखन को कालांतर में बहुत महत्व मिलेगा। आपका लिखा हिंदी मेें पढ़ा जाये यह जरूरी नहीं है। अनुवाद टूलों ने भाषा और लिपि की दीवार ढहाने का काम शुरु कर दिया है यानि यहां लिखना शुरु करने का अर्थ है कि आप अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लेखक बनने जा रहे हैं जो कि पूर्व के अनेक हिंदी लेखकों का एक सपना रहा है। हां इतना जरूरी है कि अपने लिखे पर आत्ममुग्ध न हों क्योंकि इससे रचनाकर्म प्रभावित होता है।
.............................
लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप